आमतौर पर कैंसर का इलाज काफी महंगा होता है। इसका इलाज करवाने में लोगों की जीवन भर की कमाई चली जाती है। ऐसे में 250 कैंसर अस्पताल वाले नेशनल कैंसर ग्रिड के विशेषज्ञों ने कैंसर के इलाज को सस्ता करने के लिए एक तोड़ निकाला है। इसके अंतर्गत 23 अस्पतालों ने दवा कंपनियों से मोलभाव कर 1,320 करोड़ रुपये की बचत की है। मुंबई स्थित टाटा अस्पताल की निगरानी में 23 कैंसर अस्पतालों ने फैसला लिया कि जिन दवाओं की कीमत सबसे ज्यादा है, उन्हें सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने के लिए एक प्रणाली विकसित करेंगे।
इस प्रणाली के अंतर्गत देश के सभी कैंसर अस्पताल अपनी-अपनी सूची तैयार की और सूची तैयार करके एक ही मंच के जरिए कैंसर की दवा बनाने वाली कंपनियों से मोलभाव शुरु किया। अस्पतालों की इस पहल से 1,561 करोड़ रुपये मूल्य की 40 दवाओं की खरीदी 240 करोड़ रुपये में हुई। आपसी सहमति से अस्पताल 1,320 करोड़ रुपये की बचत करने में सफल हुए। WHO की ओर से भी इस पहल की सराहना की गई है।
कैंसर के इलाज को सस्ता करने का विकल्प
टाटा अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ डॉ. सीएस प्रमेश का कहना है कि भारत में कैंसर का इलाज काफी महंगा है। प्राइवेट अस्पताल हो या फिर सरकारी अस्पताल दोनों में ही कैंसर का इलाज करने में लाखों रुपए लग जाते हैं। कई बार हम देखते हैं कि कुछ मरीजों के इलाज में ऐसी दवाओं की जरूरत पड़ती है, जिनकी कीमत बाजार में लाखों रुपये में होती है। ऐसे में महंगे इलाज को सस्ता करने के उद्देश्य से हमने मिलकर एक पहल की, जिसमें सभी अस्पतालों ने सहयोग दिया और मिलकर मोलभाव करते हुए सिर्फ सस्ती दवाएं ही नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता की परख करते हुए खरीदा।
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उन्होंने बताया कि जल्द ही देश के सभी सरकारी व निजी कैंसर अस्पताल मिलकर दूसरे चरण की खरीदी करने वाले हैं। इसमें कैंसर इलाज में इस्तेमाल सर्जिकल सामग्री और उपकरण भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि जिन दवाओं को सस्ती दरों पर खरीदा गया उनमें पारंपरिक साइटोटॉक्सिक दवाएं, लक्षित थेरेपी, एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, एंटीमेटिक्स और कैंसर सेल ग्रोथ फैक्टर में इस्तेमाल होने वाली दवाएं शामिल हैं, जो जेनेरिक भी नहीं है।