नई दिल्ली। अस्पताल मालिकों, डॉक्टरों और केमिस्ट के दबाव में आकर दवा निर्माता दवा के पैकेट पर 500 फीसदी तक मनमाना दाम प्रिंट कर रहे हैं। सभी दवाओं की कीमत पर 30 फीसदी का मार्जिन कैप लगने से दवा और मेडिकल उपकरणों की कीमतें 90 फीसदी तक कम हो जाएंगी, जिससे निर्माताओं के दवाओं की बिक्री के दाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा। गैर अधिसूचित दवाओं पर रिटेलर की खरीद की कीमत से 500 फीसदी तक से ज्यादा दाम ग्राहकों से वसूला जा रहा है। पांच प्रमुख कंपनियों की 1107 दवाइयों की स्टडी बताती है कि इनका औसत एमआरपी रिटेलर की दवाओं की खरीद की कीमत से 500 फीसदी ज्यादा है। ब्रांडेड और जेनेरिक दवा के क्वालिटी में कोई अंतर नहीं। डॉक्टरों पर बड़े-बड़े या कैपिटल अक्षरों में जेनेरिक दवाएं लिखने की कोई बाध्यता नहीं है, इसलिए वह न पढ़े जाने वाली भाषा में ब्रांडेड दवाइयां लिख रहे हैं। मरीजों को डॉक्टरों के पास बनी केमिस्ट की दुकानों से वह दवाएं मनमाने दामों पर खरीदनी पड़ती है।
बीमारी से ज्यादा आम आदमी महंगी दवाओं के बोझ से दब रहा है। सरकार, निजी दवा कंपनियों के मनमर्जी के दाम वसूलने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने में पूर्णत: असफल साबित हुई है। जन औषधालय, आम मरीज की पहुंच से दूर हैं और प्राइवेट दवा कंपनियों की तादाद बढ़ती जा रही है। ब्रांडिंग के खेल में जेनेरिक दवाओं के महत्व को दबाया जा रहा है। जीवनदाता सफेदपोश डॉक्टरों का ‘कमिशन’ कई गुना बढ़ गया है। प्राइवेट दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव की घुसपैठ सरकारी अस्पतालों के अंदरखाने तक हो गई है और लूट का कारोबार चरम पर है।