गैस्ट्रो गोष्ठी में सुपरस्पेशलिस्ट की अनुपस्थिति से फैला संक्रमण
रोहतक: पीजीआई के कुछ डाक्टरों में ‘इगोक्लोसिस’ पलाथी मारकर बैठा है। जबकि वे खुद को फिट बता रहे हैं। हैरानी इस बात की है कि यह रोग एमडीआर यानि मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस की स्थिति में आ चुका है। समय समय पर कुछेक अधिकारियों ने इस रोग का इलाज करने का प्रयास किया लेकिन देखते ही देखते वे भी इस संक्रमण की चपेट में आ गए। खासतौर से रोग का असर तब देखने को मिलता है जब संस्थान में सीएमई या सेमिनार होते हैं। इनमें कुछ डाक्टर भाग लेते हैं और कुछ नहीं लेते। हाल ही में मेडिसिन विभाग ने ‘रिसेंट एडवासिंस इन हैपेटोलोजी एंड गैस्टोएंट्रालोजी’ विषय पर एक कांफ्रेंस का आयोजन कराया। इस अवसर पर स्टेज पर मुख्य अतिथि यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार एचके अग्रवाल व मेडिसन विभाग के अध्यक्ष एवं एमएस डा. नित्यानंद रहे। जबकि आयोजन के बधाई के पात्र डा. तराना व डा. संदीप गोयल बताए गए।
कांफ्रेंस में हाजिरी काफी कम रही। जिसका मलाल बाहर बैठे दवा कम्पनियों के प्रतिनिधियों के चेहरे पर साफ दिख रहा था। कांफ्रेंस में पेट के रोग से लेकर लीवर ट्रांसप्लांट तक का जिक्र हुआ। यह बात और है कि इस संस्थान में ऐसा नहीं होता। और न ही निकट भविष्य में होने की उम्मीद। यहां पर नेफ्रो में डीएम भी नहीं होती। कांफ्रेंस का हैरान करने वाला पक्ष यह था कि इसमें संस्थान में काम करने वाले गेस्ट्रो के वरिष्ठ डा. प्रवीण मल्हौत्रा नहीं थे। जबकि डा. मल्हौत्रा अपने विषय में न केवल सुपरस्पेशलिस्ट हैं, कई अवार्ड भी ले चुके हैं।
वजह जानने का प्रयास किया गया। कई डाक्टरों से बात हुई। डाक्टरों ने खुब बोला। मगर इस शर्त पर बोला कि वे उनको कहीं ‘कोट’ नहीं करेंगे। अंदेशा तो पहले हो गया था लेकिन छानबीन से अंदेशे की पुष्टि हो गई। पता चला कि यह रोग पुराना है। तब से है जब से संस्थान में सुपरस्पेशलिटी सेंटर बना है। लाला श्यामलाल में सुपरस्पेशलिटी विभाग बनाया गया है। यहां पर कई सारे डाक्टर बैठते हैं। राज्य सरकार की ओर से यहां गैस्ट्रो के अलावा कार्डियो, कार्डिक सर्जरी, नेफ्रो, बर्न एंड प्लास्टिक, न्यूरोजर्सरी व यूरोलोजी विभाग बनाए गए हैं। इन विषयों में जिस भी डाक्टर ने सुपरस्पेशलिटी की पढाई की है उनमें और पीजीआई के वरिष्ठ डाक्टरों के बीच 32 का आंकड़ा लंबे समय से चला आ रहा है। वरिष्ठ डाक्टर मानते हैं कि वे बड़े जबकि ज्यादा पढाई करने वाले डाक्टर मानते हैं कि वे बड़े।
डाक्टरी की पढाई करने वाले छात्रों एवं मरीजों के हित में संस्थान में जो भी कार्यक्रम आयोजित होते हैं उनका संचालन विभागाध्यक्ष या अधिकारी लोग करते हैं। अफसरी के पदों पर कभी से विभागाध्यक्षों का कब्जा रहा है। पहले आर्थों व आई का था अब मेडिसिन विभाग का है। ये सभी सम्मानित डाक्टर सुपरस्पेशलिटी करने वाले डाक्टरों को अपना जूनियर मानते हैं। इनके पास आने वाले मरीजों को अगर सुपरस्पेशलिटी की जरूरत होती है तो वे उनके पास भेजने की बजाय दिल्ली जाने की सलाह दे डालते हैं। संस्थान में सेवारत वरिष्ठ डाक्टरों व सुपरस्पेशलिटी करने वाले सभी डाक्टरों के बीच इगो की यह लड़ाई लंबें समय से चली आ रही है। महसूस किया गया कि इगो का यह माइको बैक्टिरिया इतना गहरे तक जा चुका है कि रोग एमडीआर की स्टेज में है। एमएस डा. नित्यानंद ने बताया कि सीएमई में शामिल होने के लिए सभी डाक्टरों को निमंत्रण भेजा गया था। डा. प्रवीण मल्हौत्रा को भी चेयरपर्सन के लिए निमंत्रण दिया था। वे नहीं आए उनकी मर्जी।
उपचार: संस्थान में विद्यमान ‘इगोक्लोसिस’ का उपचार करने का प्रयास यहां आने वाले बहुत से अधिकारियों ने किया है लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली। इस रोग का उपचार तभी संभव है जब डाक्टर खुद चाहें। औरों के लिए नहीं तो अपने लिए ही सही। क्योंकि इगो का बैक्टिरिया सबसे पहले खुद को ही नुकसान पहुंचाता है। जो झुकता है वही बड़ा होता है। वर्तमान वीसी चाहें तो इसके उपचार का प्रयास कर सकते हैं। सुकरात के दिन सभी सीनियर-जूनियर को इक_ा बिठाएं और गाजर का गर्म-गर्म हलवा खिलाएं।