रोहतक : मरीज इलाज के अभाव में मरते रहे है और पीजीआई के कुछ जिम्मेदार डॉक्टर कॉकटेल पार्टी का आनंद लेते रहे। जिन रेजीडेंट डॉक्टरों के हवाले सीनियर डॉक्टर पीजीआई के मरीज छोड़ कर गए थे उन्होंने मरीज की जिदंगी से ज्यादा हड़ताल को तवज्जो दी। पुलिस को दी गई शिकायत और एक नामी फार्मा कंपनी के प्रोग्राम से पीजीआई के डॉक्टरों की बेशर्मी सार्वजनिक हुई।

नए बस स्टैंड के निकट बने होटल में पीजीआई के कुछ सीनियर डॉक्टर उस वक्त फार्मा कंपनी के रहमोकर्म पर शराब के जाम छलका रहे थे, जब उनके संस्थान में रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल थी। मरीज मारे-मारे फिर रहे थे। डॉक्टरों को न तो इस बात की शर्म थी कि वह किन हालातों में अपने संस्थान को लावारिस छोड़ कर मस्ती करने जा रहे हैं और न इस बात का खौफ की शिकायत यदि ऊपर गई तो सरकार और सीनियर अधिकार उनकी ‘खाल’ खीचेंगे। पीजीआई के डॉक्टरों ने न केवल हरियाणा सरकार को ठेंगा दिखाया बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुहिम को भी ललकार दिया। दरअसल, प्रधानमंत्री ने आम आदमी को सस्ता इलाज देने के लिए डॉक्टरों पर नकेल कसते हुए जेनेरिक दवाई लिखने और फार्मा कंपनियों के आयोजन का हिस्सा न बनने का कानून बनवाया है। लेकिन भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले रोहतक में बने प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान के कुछ वरिष्ठ डॉक्टर और पदाधिकारियों ने सारी मर्यादा लांघते हुए अपने पेशे को शर्मसार कर दिया।

दूसरी ओर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन खेड़ी सांपला की रहने वाली नीलम को डेंगू की पीड़ा में पीजीआई लाया गया। परिजनों का आरोप है कि वार्ड नं. 3 की यूनिट एक में दाखिल नीलम के इलाज में घोर लापरवाही बरती गई। हालत नाजूक होने पर मरीज को जब खून चढ़ाने का वक्त आया तो डॉक्टर यह कहते हुए चले गए कि हड़ताल हो गई है, इलाज नहीं होगा। परिजनों का आरोप है कि नीलम को बलीडिंग हो रही थी। शरीर पर सूजन थी मगर पीजीआई के डॉक्टरों का रवैया ऐसा था मानों डॉक्टर भगवान से ‘राक्षस’ हो गए। जब शिकायत सीनियर डॉक्टर से की गई तो वहां भी सुनने को मिला कि पहले पीजीआई प्रशासन को सबक तो सीखा दें, इलाज तो होता रहेगा। इसी तरह इलाज के अभाव में शहर की एक नौंवी कक्षा की छात्रा किरण ने समय पर इलाज न मिल पाने के कारण दम तोड़ दिया। परिजनों का आरोप है कि पीजीआई के आपातकालीन विभाग में दो घंटे तक बच्ची तड़पती रही पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। बाद में बोले, इसे प्राइवेट में ले जाओ। यहां कुछ न हीं है।

पीजीआई के डॉक्टरों की कॉकटेल और बेपटरी हुए इलाज के मुद्दे पर जब कुलपति ओपी कालरा से मीडिया ने सवाल किया तो वह बोले कि फार्मा कंपनी के इस तरह के कार्यक्रमों में जाना बड़ी बात नहीं। उन्होंने खुद अपने, डीन और डॉ. ध्रुव चौधरी के कार्यक्रम में शिरकत करने की बात स्वीकारी लेकिन अन्य डॉक्टरों के वहां पहुंचने और शराब पीने की बात को उन्होंने साफ इनकार कर दिया। हड़ताल के कारण चिकित्सा व्यवस्था प्रभावित होने पर डॉ. कालरा ने कहा कि थोड़ी बहुत दिक्कत थी, सब ठीक हो गया। दूसरी तरफ बच्चा चोरी केस में पिछले 25 दिन से धरने पर बैठे परिजनों को स्थाई नौकरी और चार लाख रुपये का मुआवजा देकर उठा दिया। यह अलग बात है कि कुछ लोग दबी जुबान में कह रहे हैं कि उन्हें डरा-धमका कर जबरदस्ती उठाया गया है। वरना जो परिजन इतने दिन से एक बात कह रहे थे कि बिना बच्चा लिए घर नहीं लौटेंगे, चाहे जान चली जाए वह इस मुआवजे पर कैसे सहमत हो सकते हैं। खैर, जिनका बच्चा चोरी हुआ उन्हें तो चार लाख रुपये और नौकरी देकर मरहम लगा दिया लेकिन हड़ताल के दौरान मरने वाले करीब 30 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन होगा। सरकार इसकी जिम्मेदारी लेगी या पीजीआई प्रशासन, सिस्टम को करारा तमाचा जडऩे वाले इस सवाल के जवाब का सबको इंतजार है।

नोट: खबर में उन्हीं डॉक्टरों की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए गए हैं, जिन्होंने चिकित्सा के अपने अपने मूल धर्म को कलंकित किया है। बहुत से काबिल डॉक्टर भी इस पीजीआई में मौजूद हैं, जिनके सहारे संस्थान की साख बची हुई है।