यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (यूएसबीआइसी) का दावा

मुंबई
भारत सरकार पेटेंटशुदा महंगी दवाओं की सस्ती कीमत वाली नकल तैयार करने के लिए अनिवार्य लाइसेंस जारी नहीं करेगी। सरकार ने निजी तौर पर अमेरिकी कारोबारी समूहों को यह आश्वासन दिया है। यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (यूएसबीआइसी) ने यह दावा किया है। अमेरिका के साथ विवाद की जड़ में वह कानूनी प्रावधान है जो मूल दवाओं के पेटेंट को दरकिनार कर स्थानीय फार्मा कंपनियों को ‘अनिवार्य लाइसेंस’ प्रदान करने की अनुमति देता है। इसकी वजह से नकल करके घरेलू कंपनियां सस्ती कीमत पर दवाएं बना पाती हैं।
यूएसआइबीसी ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) के सामने बीते महीने एक रिपोर्ट पेश की है। इसमें ही भारत सरकार के उक्त वादे का खुलासा किया गया है। व्यापार प्रतिनिधि अमेरिकी कंपनियों के सामने आने वाली व्यापार बाधाओं की पहचान करने के लिए ग्लोबल बौद्धिक संपदा अधिकारों की समीक्षा कर रहा है। यूएसटीआर ने भारत को दो वर्षो के लिए अपनी सर्वाधिक प्राथमिकता वाली निगरानी सूची में डाल रखा है। ऐसा करने के पीछे उसकी ओर से भारत के पेटेंट कानूनों को वजह बताया गया है। प्रतिनिधि का आरोप है कि भारतीय कानून घरेलू दवा निर्माताओं का अनुचित ढंग से पक्ष लेते हैं।
सरकार जन स्वास्थ्य के खतरे और सभी को किफायती दवा सुलभ कराने जैसी कुछ स्थितियों में अनिवार्य लाइसेंस जारी कर सकती है। भारत सरकार ने ऐसा पहला लाइसेंस वर्ष 2012 में स्थानीय फर्म नैटको लिमिटेड को कैंसर की दवा नेक्सावर को सस्ती कीमत में उपलब्ध कराने के लिए दिया था। इसके जरिये नैटको ने जर्मन कंपनी बेयर की मूल नेक्सावर के मुकाबले दस गुना सस्ती दवा बाजार में उतार दी थी।
इस घटना के बाद से ही पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों ने भारतीय पेटेंट कानून के खिलाफ हल्ला हुआ है। उनकी ओर से लगातार इस कानून को बदलने का दबाव डाला जा रहा है। बावजूद इसके भारत सरकार ने सार्वजनिक तौर पर कानून में कोई बदलाव करने का वादा नहीं किया है। अलबत्ता केंद्र सरकार के अधिकारी बार-बार कह रहे हैं कि भारत पेटेंटधारियों के हितों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि यूएसटीआर को दी गई रिपोर्ट में भी सिर्फ यही कहा गया है कि भारत सरकार व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए घरेलू दवा कंपनियों को कोई अनिवार्य लाइसेंस प्रदान नहीं करेगी।
भारतीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण और उनके मंत्रलय में दवाओं के लिए प्रभारी संयुक्तसचिव और यूएसआइबीसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वाशिंगटन स्थित गैर सरकारी संगठन नॉलेज इकोलॉजी इंटरनेशनल (केईआइ) ने यूएसआइबीसी की इस रिपोर्ट पर चिंता जताई है। संगठन ने कहा है कि ऐसा कोई समझौता है, तो यह परेशानी में डालने वाली बात है। अमेरिकी कंपनियों की ओर से डाला गया ऐसा दबाव और कुछ नहीं, कैंसर के गरीब मरीजों के खिलाफ जंग का एलान है।