मुंबई/अम्बाला, बृजेंद्र मल्होत्रा। पीपीपी (फार्मासिस्ट फिजिकल प्रमाणपत्र) कार्ड जिसे कैरी करना आसान है परन्तु पूरे पंजीकरण पत्र को साथ रखना सुगम नहीं की परिभाषा देकर फार्मासिस्टों से आई कार्ड की शक्ल वाला प्रमाणपत्र की कीमत 100 रुपए निर्धारित की गई। इसकी फार्मासिस्टों से उगाही 100 रुपए से 300 रुपए की जा रही है।
इस कार्ड को बनवाने के लिए फार्मासिस्ट को निजी तौर पर फार्मेसी कॉउंसिल या कॉउंसिल मेंबर के समक्ष स्वयं की उपस्थििति दर्ज करवानी होती है। ऐसे में इसे स्वयं जीवित होने का प्रमाण देने समान माना जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस पीपीपी कार्ड की वैधता 5 वर्ष की निश्चित की गई है। इसके लिए किसी भी प्रारूप में कोई कैम्प नहीं लगाया जाता परन्तु कई जिलों में जिला संगठन 300 रुपए लेकर पीपीपी कार्ड बनवाने हेतु दस्तावेज इक_े कर रहे हैं। इस पर 27 दिसम्बर 2019 को हुई एमएससीडीए की ईसी बैठक में जोरदार हंगामा हुआ कि जिस प्रमाणपत्र की कीमत न एफडीए मानता है। न राज्य सरकार या फार्मेसी कॉउंसिल ऑफ इंडिया न इस नैनो कार्ड का प्रावधान किसी एक्ट में है तो क्यों फार्मासिस्टों का दोहन किया जा रहा है। सदन में जोर-शोर से उठे इस मुद्दे पर एक वरिष्ठ फार्मासिस्ट ने तथ्यों के आधार पर सदन का ध्यानाकर्षण किया तो सदन में बैठे कई फार्मासिस्टों ने बार-बार कहा कि महाराष्ट्र स्टेट केमिस्ट एन्ड ड्रगिस्ट अलाइंस के राज्याध्यक्ष जगन्नाथ उनसे नाराज हो गए तो उनका व्यापार बन्द करवा देंगे। ऐसे में ऐसे डाक्यूमेंट पर धन खर्च क्यों। जिस डाक्यूमेंट को न विभाग माने और न सरकार और न ही प्रावधान हो, ऊपर से आवाज न उठाने का खामियाजा व्यापार खो जाने से हो तो इसे हिटलर राज की संज्ञा देना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा। इस बारे महाराष्ट्र फार्मेसी कॉउंसिल की रजिस्ट्रार शैली मिशेल ने भी इस पीपीपी प्रमाणपत्र के औचित्य व कैम्प लगाने की अनुमति से अनभिज्ञता जताई।