लखनऊ। प्रदेश में फार्मास्युटिकल उद्योग नीति-2018 लागू हो गई है। इससे फार्मास्युटिकल उद्योग शुरू करने के लिए जरूरी संसाधन व तंत्र को विकसित करने में मदद मिलेगी। इस संबंध में सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर बताया है कि ये नीति पांच साल तक लागू रहेगी। प्रदेश की औद्योगिक निवेश और रोजगार प्रोत्साहन नीति को इससे बढ़ावा मिलेगा। फार्मा क्षेत्र की कंपनियों के आने से प्रदेश में राजस्व भी आएगा। तकनीकी मार्गदर्शन के लिए यूपी फार्मास्युटिकल डेवलपमेंट सेल की स्थापना की जाएगी। औद्योगिक विकास आयुक्त इसके अध्यक्ष होंगे। अधिसूचना के अनुसार फार्मा क्षेत्र के उद्यमियों को सिंगल विंडो सिस्टम उपलब्ध कराया जाएगा ताकि उन्हें परेशानी न हो। नीति में नोएडा, गाजियाबाद, आगरा, कानपुर, लखनऊ, झांसी, गोरखपुर, वाराणसी और इलाहाबाद जिले चिह्नित किए गए हैं। निवेशकों को 10 वर्ष तक इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी से छूट, जमीन की मुफ्त रजिस्ट्री के साथ ही पांच वर्ष तक मंडी शुल्क भी नहीं देना होगा। जमीन खरीदने के लिए लोन पर 50 फीसदी ब्याज जो अधिकतम 50 लाख रुपये होगा, सरकार अनुदान के रूप में देगी। सडक़, बिजली, पानी के लिए ब्याज का 60 फीसदी सात वर्ष में अनुदान देगी। यह अधिकतम 50 करोड़ रुपये होगा।
एक वर्ष में अधिकतम 10 करोड़ अनुदान मिलेगा। आवास निर्माण के लोन पर 60 फीसदी सब्सिडी मिलेगी, जो प्रतिवर्ष अधिकतम पांच करोड़ रुपये होगी। 30 करोड़ रुपये प्रति फार्मा पार्क की अधिकतम सीमा तय की गई है। दवाओं के अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए पेटेंट कराने का खर्च, आईएसओ, बीआईएस गुणवत्ता प्रमाण पत्र के लिए सरकार मदद करेगी। अनुसंधान के लिए 50 लाख रुपये दिए जाएंगे। शून्य अपशिष्ट प्रोत्साहन योजना में 10 लाख रुपये समेत कई सुविधाएं दी जाएंगी। फार्मास्युटिकल क्षेत्र में बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) को बढ़ावा देने के लिए अधिक राशि की व्यवस्था करने, आयुष स्वास्थ्य सेवा (हेल्थकेयर) उत्पादों के प्रोत्साहन के माध्यम से आयुष स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना भी इस नीति में शामिल है। जरूरत होने पर नीति में किसी संशोधन के अनुमोदन के लिए केवल मंत्रिपरिषद की अधिकृत होगी। यदि नीति में संशोधन किया जाता है तो भी राज्य सरकार इकाई को पहले से स्वीकृत प्रोत्साहनों का पैकेज वापस नहीं लेगी।