नई दिल्ली। भारत दवा निर्माण से जुड़े 75 फीसदी कच्चे माल या एक्टिव फार्मा इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) का आयात चीन से करता है। ऐसे में चीन में रॉ मेटेरियल महंगा होने से फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री ने सरकार से प्राइस कंट्रोल के तहत आने वाली दवाओं के दाम बढ़ाने का अनुरोध किया है। फार्मा इंडस्ट्री के संगठनों, फेडरेशन ऑफ फार्मास्टुकिल आंत्रप्रेन्योर, इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्युटिकल्स, हेल्थ मिनिस्ट्री, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन के जरिए वे प्राइस कंट्रोल के तहत आने वाली सभी दवाओं के दामों को बढ़ाने के लिए वीशंष्हा शक्ति का इस्तेमाल करने का निवेदन दिया है। फार्मा इंडस्ट्री का कहना है कि दवाओं की कीमतें बढऩे से फार्मा कंपनियों की ग्रोथ में तेजी आ सकती है। फेडरेशन ऑफ फार्मास्टुकिल आंत्रप्रेन्योर के मुताबिक, एपीआई की कीमत बढऩे से ऐसी दवाओं को बनाने की कॉस्ट में वृद्धि हुई है। एपीआई का इस्तेमाल दवा में थेराप्यूटिक प्रभाव देने के लिए किया जाता है। शेड्यूल दवाओं की कीमतों में होलसेल प्राइस इंडेक्स के तहत साल में एक बार बदलाव किया जाता है। पिछले एक साल में चीन में तकरीबन 150 एपीआई मैन्युफैक्चरर्स ने एनवायरमेंटल स्टैंडर्ड का पालन नहीं कर पाने की वजह से फैक्टरियां बंद की है। इस वजह से एपीआई की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।