नई दिल्ली। देश की कई फार्मा कंपनियों पर गाज गिरने की संभावना है। मानकों पर खरी न उतरने वाली दवा कंपनियों का लाइसेंस सस्पेंड या कैंसिल भी किया जा सकता है। तय गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) का पालन न करने वाली कंपनियों को दंडित भी किया जा सकता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले दो वर्षों में 147 दवा कंपनियों की जांच की गई थी। अब सेंट्रल और स्टेट ड्रग रेग्युलेटर्स की जॉइंट टीम उनका दोबारा निरीक्षण करेगी। इस जांच में देखा जाएगा कि देश में बेची जाने वाली और विदेश में निर्यात की जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता सुधारने के लिए कंपनियों ने उचित कदम उठाए हैं या नहीं।
राज्यों के ड्रग रेग्युलेटर 37 कंपनियों की भी दोबारा जांच करेंगे क्योंकि जांच के पहले चरण में इन्हें कुछ मानकों पर खरा नहीं पाया गया था। दूसरी बार की जांच में अगर इन कंपनियों में नियमों का उल्लंघन पाया गया तो इनके लाइसेंस सस्पेंड या कैंसिल किए जा सकते हैं। इस लिहाज से मामला पहले चरण की जांच से अलग है। पहली जांच में नियमों के उल्लंघन की बात पता चलने पर कंपनियों को खामियां दूर करने का समय दिया गया था।
बता दें कि अभी कई बड़ी भारतीय दवा कंपनियां यूएस एफडीए और हेल्थ कनाडा जैसी ग्लोबल रेग्युलेटरी एजेंसियों की ओर से तय कंप्लायंस प्रसीजर्स को लेकर मुश्किलों का सामना कर रही हैं। इस मामले में इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रेजिडेंट दीपनाथ रॉय चौधरी का कहना है कि सरकार इंडस्ट्री को स्टैंडर्ड्स के अनुसार चलाना चाहती है तो उसे कंपनियों को फाइनैंशियल और टेक्निकल सपोर्ट देना चाहिए।
छोटी और मझोली दवा कंपनियों को फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर न केवल बड़ी रकम निवेश करनी होगी, बल्कि डब्ल्यूएचओ जीएमपी गाइडलाइंस के पालन के लिए ऑपरेशनल कॉस्ट पर भी ज्यादा खर्च करना होगा। इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस के सेक्रेटरी जनरल डीजी शाह ने कहा कि मरीजों का हित इसी में है कि भारतीय जीएमपी शर्तों का पालन न करने वाली यूनिट्स को उचित चेतावनी के बाद बंद कर दिया जाए।