रायपुर। फार्मेसी काउंसिल के तत्कालीन रजिस्ट्रार टीआर साहू ने वर्ष 2007 में सदस्यों की बैठक के दौरान फार्मासिस्टों का आजीवन पंजीयन करने का प्रस्ताव रखा। इसके लिए प्रत्येक फार्मासिस्ट से 5 हजार रुपए एकमुश्त लिए जाने थे। साथ ही इससे आने वाली रकम को अलग खाते में रखना था। इसके ब्याज से आने वाली राशि से नवीनीकरण से मिलने वाली राशि की भरपाई करनी थी। वहीं, सर्वसम्मति के साथ इसे पारित भी कर दिया गया। जबकि आजीवन पंजीयन का प्रावधान ही फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के नाम्र्स में नहीं है। इसके बावजूद इसे पारित कर व्यवस्था के तहत 7 हजार से अधिक फार्मासिस्टों को आजीवन पंजीकृत कर दिया गया है। इससे काउंसिल को सालाना 15 लाख से अधिक की राशि का नुकसान हो रहा है।
 प्रस्ताव पारित करने के दौरान आजीवन पंजीयन से मिली राशि को अलग खाते में रखने की बात स्वीकारी गई थी। इसके 12 वर्ष बाद भी अलग से खाता नहीं खोला गया है। वहीं, सेविंग अकाउंट से मिलने वाला ब्याज भी एफडी की तुलना में काफी कम होता है। ऐसे में काउंसिल को घाटा सहना पड़ रहा है। स्टेट फार्मेसी काउंसिल में इन दिनों फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के नाम्र्स को दरिकनार किया जा रहा है। हालात ऐसे हैं कि नियम नहीं होने के बावजूद प्रदेशभर से 7 हजार से अधिक फार्मासिस्टों का आजीवन पंजीयन कर दिया गया है, जिससे नवीनीकरण से आने वाले राजस्व का नुकसान काउंसिल को उठाना पड़ रहा है। इस संबंध में यूथ फार्मासिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राहुल वर्मा का कहना है कि फार्मेसी एक्ट 1948 में आजीवन पंजीयन का प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में यह गैरसंवैधानिक है। इसे तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जाना चाहिए और ऐसा करने वाले पूर्व सदस्यों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। वहीं, रजिस्ट्रार डॉ. श्रीकांत राजिमवाले का कहना है कि आजीवन पंजीयन का प्रावधान नहीं है। मेरे कार्यकाल से पहले ही इसे कर दिया गया है। जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। अभी सरकार बनने के बाद सदस्यों का मनोनयन नहीं हुआ है। जैसे ही मनोनयन होगा, इस संदर्भ में कार्रवाई की जाएगी। बता दें कि राज्यभर में 17 हजार से अधिक फार्मासिस्ट पंजीकृत हैं। इन्हें नवीनीकरण के लिए हर वर्ष 500 रुपए देने होते हैं। वहीं, 7 हजार से अधिक लोगों का आजीवन पंजीयन होने से 12 वर्ष में तकरीबन 4 करोड़ 32 लाख रुपए का नुकसान काउंसिल को पहुंचा है। इन फार्मासिस्टों द्वारा संचालित कार्यों का निरीक्षण करने के लिए हर जिलों में फार्मेसी इंस्पेक्टर भी नियुक्त करने की बात भी कही गई थी। इसके बावजूद किसी भी जिले में इंस्पेक्टर की नियुक्ति नहीं की गई है। जिसकी वजह से कहीं लाइसेंस किराए पर लेकर तो कहीं बिना फार्मासिस्ट के ही दुकानें संचालित की जा रही हैं।