वायु प्रदूषण बच्चों के लिए घातक साबित हो सकता है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जन्म के समय बच्चों के यातायात से होने वाले वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 12 साल की उम्र में मस्तिष्क में संरचनात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं। सिनसिनाटी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर के अध्ययन में पाया गया कि जन्म के समय ज्यादा प्रदूषित वातावरण में रहने वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की तुलना में 12 साल की उम्र में ग्रे मैटर की मात्रा और कॉर्टिकल मोटाई कम होती है। जागरुकता, विचार, भाषा, स्मृति, ध्यान और चेतना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली मस्तिष्क की बाहरी परत ग्रे मैटर है, वहीं कॉर्टिकल बुद्धिमता से संबंधित होता है।
सिनसिनाटी चिल्ड्रन के रिसर्च फेलो और इस अध्ययन के लीड ऑथर ट्रैविस बेकविथ के मुताबिक अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि जहां आप रहते हैं और जिस हवा में सांस लेते हैं, वह मस्तिष्क को कैसे विकसित करती है, प्रभावित कर सकती है, जबकि नुकसान का प्रतिशत एक डिजनरेटिव डिसीज की अवस्था में देखा जा सकता है। यह नुकसान कई तरह की शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं के विकास को प्रभावित कर सकता है।
ग्रे मैटर में मोटर कंट्रोल में शामिल मस्तिष्क के क्षेत्र और साथ ही सेंसरी परसेप्शन, जैसे देखने और सुनने में शामिल हैं। कोर्टिकल मोटाई बाहरी ग्रे मैटर की गहराई को दर्शाती है। अध्ययन में पाया गया कि ललाट और पार्श्विका लोब और सेरिबैलम में विशिष्ट क्षेत्र 3 से 4 प्रतिशत के क्रम पर घटते-बढ़ते थे।
शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव को जानने के लिए बच्चों के मस्तिष्क की इमेज ली। इसके लिए मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग टेक्नीक का इस्तेमाल किया। यह अध्ययन इन बच्चों के छह माह की आयु में किया गया।
शोध में पाया गया कि एक साल की आयु तक के बच्चे उच्च या निम्न स्तर के प्रदूषण से प्रभावित हुए हैं। सिनसिनाटी की 27 साइट्स में एयर सैम्पलिंग नेटवर्क का इस्तेमाल किया गया और इसके नतीजों के मुताबिक प्रदूषण के दुष्प्रभाव का अंदाजा लगाया गया। यह आंकड़ें अलग-अलग मौसम में लिए गए और इन्हें एक साथ चार या पांच साइट्स से लिया। बच्चों के मस्तिष्क की 1,2,3,4,7 और 12 साल की उम्र में जांच की गई। इस अध्ययन से साफ हुआ कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चों की दिमागी संरचना में बदलाव हुए।
www.myupchar.com के डॉ. प्रदीप जैन का कहना है कि बच्चे के दिमाग का सही विकास हो इसके लिए संतुलित और पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। बच्चों के आहार में पोषक तत्वों की कमी का दुष्प्रभाव भी मस्तिष्क पर पड़ता है। आनुवंशिक विकार और जन्म के समय या बाद में सिर के निचले हिस्से में चोट लगना आदि भी प्रभाव डालता है। घर में तनावपूर्ण माहौल का असर भी बच्चे के मस्तिष्क पर पड़ता है। इससे उनकी याद्दाश्त पर असर पड़ता है। नींद की कमी से भी उनके याद्दाश्त में कमी आती है। बच्चे पर बारीकी से नजर रखें। यदि किसी तरह की असामान्य हरकत नजर आती है तो बिना विलंब डॉक्टर से मिलें।