रोहतक। हरियाणा से एक हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है। एक सर्वे के मुताबिक, प्रदेश में बच्चों पर खुलकर एंटीबॉयोटिक का इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि किसी भी रूप से सही नहीं है। पीजीआई चंडीगढ़ के स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के डॉक्टरों ने सर्वे में पाया कि प्रदेश में डॉक्टर बच्चों की हल्की-फुल्की बीमारियों में भी एंटीबॉयोटिक दे देते हंै। सर्वे की मानें तो बच्चों में साधारण डायरिया (पेचिश) और अपर रैस्पीरेटरी ट्रैक्ट इंफैक्शन (श्वास नली के ऊपरी हिस्से में इंफैक्शन) के लिए जो दवाएं दी जा रही हैं, उनमें 80 फीसदी एंटीबॉयोटिक हैं। दोनों राज्यों के 80 स्वास्थ्य संस्थानों में किए सर्वे में कहा गया कि डॉक्टरों द्वारा जिस ढंग से अंधाधुंध एंटीबॉयोटिक का इस्तेमाल किया जा रहा है उसने मरीजों की सुरक्षा पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। ‘ड्रग प्रिस्क्रिप्शन बिहेवियर – ए क्रॉस-सेक्शन स्टडी इन पब्लिक हैल्थ फैसिलिटीज इन टू स्टेट्स ऑफ नॉर्थ इंडिया’ नामक इस अध्ययन को डा. जयप्रसाद त्रिपाठी, डा. पंकज बहुगुणा और डा. शंकर पिंजा ने किया है। यह अध्ययन दोनों राज्यों के 6-6 जिलों में किया गया।
हर राज्य में 1 टरशियरी केयर मेडिकल कॉलेज, 6 जिला अस्पतालों, 11 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सी.एच.सी.) और 22 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पी.एच.सी.) को शामिल किया गया। कुल मिलाकर डॉक्टरों द्वारा लिखे गए 1,609 पर्चों (प्रिस्क्रिप्शंस) का अध्ययन किया गया। इनमें हरियाणा से 877 और पंजाब से 732 प्रिस्क्रिप्शंस शामिल किए गए। पता यह लगा कि औसतन हर मरीज को 2-2 दवाएं लिखी गई थीं। ‘बी.एम.सी. पब्लिक हैल्थ’ नामक जर्नल में छपे एक लेख में बताया गया है कि अकेले भारत में दवाओं के ऐसे इस्तेमाल से होने वाले ‘मल्टी-ड्रग रैसिस्टैंस’ के कारण 5 से 7 साल आयु वर्ग में 58,000 बच्चों की हर साल मौत होती है।
‘जर्नल ऑफ पेडियाट्रिक इंफैक्शियस डिसीज सोसायटी’ में छपे अपोलो हॉस्पिटल के सर्वे के मुताबिक अब ऐसी आशंका पैदा हो गई है कि देश में एक महीने से कम उम्र के बीमार बच्चों में से 95 फीसदी को एम्पीसिलीन जैसी साधारण एंटीबायोटिक असर ही न करे। इसका कारण एंटीबॉयोटिक रैसिस्टैंस है जोकि एक भयावह स्थिति है। अमेरिकी संस्थान ‘एन.सी.बी.आई. (नैशनल सैंटर फॉर बायोटैक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन)’ का कहना है कि भारत में बैक्टिरिया जनित रोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। ऐसे में एंटीबॉयोटिक की भूमिका काफी बढ़ जाती है। निमोनिया से देश में हर साल 410000 मौतें होती हैं, और बच्चों की मृत्यु का यह नम्बर एक कारण है। इनमें से तमाम मौतें इस कारण होतीं हैं क्योंकि मरीजों को समय पर जीवन-रक्षक दवाएं नहीं मिलतींं।तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि एंटीबॉयोटिक का इस्तेमाल उन बीमारियों पर किया जाता है जिनके लिए ये बनी ही नहीं हैं। खासकर सामान्य सर्दी-जुकाम व साधारण पेचिश (डायरिया) जिसे ओ.आर.एस. घोल (ओरल रिहाइड्रेशन थेरैपी) से ठीक किया जा सकता है। नतीजतन बच्चों में ही एंटीबायोटिक रेसिस्टैंस पैदा हो जाता है और मौके पर एंटीबॉयोटिक असर नहीं करती।