नई दिल्ली: प्रदूषित राजधानी का कलंक झेल रही दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से छाया जहरीला धुआं रोगियों के लिए आफत बन गया। अस्थमा और सांस के मरीजों का तो जीना मुश्किल हो गया। उन्हें दवा की डोज बढ़ानी पड़ी।
पीजीआई रोहतक के मेडीसिन विभागाध्यक्ष डॉ. नित्यानंद के मुताबिक, प्रदूषण की वजह से अस्थमा और सांस के मरीजों की स्थिति खराब होना स्वाभाविक है। अस्पताल में न केवल मरीजों की संख्या बढ़ी है बल्कि मर्ज भी बढ़ गया है। दवा से कंट्रोल हो जाने वाले मरीजों को नेबुलाइजर देना पड़ता है। निजी अस्पतालों में भी मरीजों की भीड़ एकदम बढ़ गई। प्रदूषण का साइड इफेक्ट यह है कि लगभग 40 पर्सेंट मरीजों में नेबुलाइजर का इस्तेमाल बढ़ गया है। इससे उनकी बीमारी के साथ-साथ इलाज का खर्च भी बढ़ रहा है। गंगाराम के लंग्स स्पेशलिस्ट डॉ. अरविंद कुमार के मुताबिक, अस्थमा मरीजों की परेशानी इतनी बढ़ गई है कि पहले से ली जा रही दवा की डोज ने काम करना बंद कर दिया। कुछ दिनों के अंतराल में कई ऐसे मरीज इलाज के लिए आए जो पहले दिन में केवल दो बार नेबुलाइजर लेते थे, अब उन्हें तीन से चार बार लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। कई मरीजों को इसके बाद भी फायदा नहीं होते देखा गया। जिस कारण अस्पताल में दाखिल करना पड़ा।
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. आदित्य बतरा के मुताबिक, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मरीजों में पिछले कुछ दिनों से परेशानी बढ़ती जा रही है। खासकर बच्चों और बुजुर्ग की बीमारी बढ़ गई है। पहले इन लोगों को इलाज के लिए इनहेलर दिया जाता था, लेकिन अब इन्हें इससे फायदा नहीं हो रहा है। डॉक्टर ने बताया कि प्रदूषित हवा का सबसे बुरा असर बच्चों पर होता है, क्योंकि उनके फेफड़े पूरी तरह डिवेलप नहीं होते। इससे लंग्स में सूजन आ सकती है, जिससे उन्हें बाद में भी दिक्कत हो सकती है। उन्होंने कहा कि 3-4 साल के बच्चों में काफी परेशानी देखी जा रही है, रोजाना ऐसे कई बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
नेबुलाइजर असल में सांस से संबंधित बीमारियों जैसे अस्थमा, क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से राहत पहुंचाने और इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला इक्यूपमेंट्स है। सांस (रेसप्रेटरी) से संबंधित समस्याओं से जूझ रहे मरीजों को आमतौर पर इनहेलर दी जाती है, लेकिन दवाओं को सीधे फेफड़ों तक पहुंचाने के लिए नेबुलाइरज का इस्तेमाल बेहतर है। नेबुलाइजर में एक कप, ट्यूब, मास्क और एक एयर कंप्रेसर होता है। इसमें सांस के द्वारा फेफड़ों तक दवा पहुंचाई जाती है। दबाव युक्त हवा ट्यूब से होते हुए सांस के जरिए शरीर के अंदर जाती है। इनहेलर के जरिए दवा की डोज अनियमित हो सकती है जबकि नेबुलाइजर से डोज कंट्रोल रहता है। जिन्हें अस्थमा के दौरान इनहेलर यूज करने में परेशानी होती है, उनके लिए नेबुलाइजर सही तरीका है।