मुंबई। दो दवा कंपनियां रॉश और बायोकॉन भी कोरोना वायरस के इलाज में दवा का इस्तेमाल कर रही हैं। रॉश की गठिया रोग की सिप्ला द्वारा बेची जाने वाली दवा एक्टेम्रा (टोसिलिजुमैब) को कोविड-19 मरीजों में सूजन दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं पता चला है कि बायोकॉन अपनी सोरायसिस की दवा आइटोलिजुमैब में बदलाव लाकर इसका कोरोनावायरस के उपचार में इस्तेमाल कर रही है।
दोनों दवाओं का परीक्षण मुंबई के नायर हॉस्पिटल और किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) हॉस्पिटल में गंभीर रूप से बीमार कोरोना मरीजों पर किया जा रहा है। खबरों से पता चलता है कि रॉश की टोसिलीजुमैब का इस्तेमाल कर रहे नायर हॉस्पिटल में दो मरीजों के स्वास्थ्य में बड़ा सुधार दिखा है और उन्हें वेंटीलेटर से हटाया जा सकता है। वहीं केईएम में भी मरीज को बायोकॉन की आइटोलिजुमैब दवा दी गई। मणिपाल हॉस्पिटल्स में इंटरवेंशनल पलमोनोलॉजी ऐंड स्लीप मेडिसिन के एचओडी सत्यनारायण मैसूर ने कहा कि मुंबई में, कोरोनावायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अब तक टोसिलिजुमैब का इस्तेमाल कोविड-19 मरीजों में ज्यादा साइटोकिन बनने से रोकने के लिए इंटरल्यूकिन-6 के तौर पर किया जा रहा था। अब इसे आइटोलिजुमैब के तौर पर पुन: तैयार कर इसका परीक्षण किया जा रहा है। मणिपाल हॉस्पिटल्स कर्नाटक में गठित कोविड-19 कार्यबल का भी सदस्य है। बृह: मुंबई नगरपालिका (बीएमसी) ने अब 120 से ज्यादा उन मरीजों पर इन दवाओं को आजमाने का निर्णय लिया है जिनकी उसने पहचान की है और उसका मानना है कि दन दवाओं से उन्हें लाभ मिल सकता है। लेकिन समस्या कीमत को लेकर है। इसकी एक खुराक की कीमत लगभग 60,000 रुपये है। इस दवा की तीन खुराक लेने के लिए मरीज को 1.8 लाख रुपये चुकाने की जरूरत होगी। रिपोर्टों के अनुसार, दवा कंपनी बायोकॉन ने बीएमसी को मुप्त में इस दवा की आपूर्ति करने की सहमति जताई है। हालांकि बायोकॉन को इस संबंध में भेजे गए ईमेल संदेश का कोई जवाब नहीं मिला है। आईटोलिजुमैब को अलजुमैब ब्रांड नाम के तहत भारत में 2013 में में बायोकॉन द्वारा तैयार और पेश किया गया था। इस दवा को गंभीर त्वचा रोग सोरायसिस के इजाज के लिए विकसित किया गया था। सूत्रों का कहना है कि सिप्ला ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एकीकृत परीक्षण के तहत भारत में करोना मरीजों के लिए दवाओं का दान करने का निर्णय लिया है। डब्ल्यूएचओ की पहल हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन जैसी मलेरिया-रोधी दवाओं के अलावा लोपिनेविर और रिटोनेविर जैसी एचआईवी-रोधी दवाओं की प्रभावकारिता की जांच से भी जुड़ी हुई है। हालांकि अभी इस बारे में कंपनी ने कोई पुष्टि करने से इनकार कर दिया है। बायोकॉन के अलावा, कई अन्य भारतीय दवा कंपनियां कोविड-19 उपचार की दवा तलाशने के लिए चिकित्सीय परीक्षण की दिशा में कदम उठा रही हैं। जहां ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स कोरोनावायरस मरीजों के लिए एंटी-वायरस दवा फैविपिराविन के लिए इस महीने चिकित्सीय परीक्षण शुरू करने की तैयारी कर रही है, वहीं बेंगलूरु की स्ट्राइडï्स फार्मा साइंस भी भारत में दवा के लिए मंजूरी के लिए आवेदन कर रही है। अहमदाबाद की दवा कंपनी कैडिला हेल्थकेयर भी इंटरफेरॉन अल्फा 2-बी का चिकित्सीय परीक्षण शुरू करने की तैयारी कर रही है। इस बायोसिमिलर का इस्तेमाल हैपेटाइटिस सी के उपचार में किया जाता है और इसकी बिक्री कंपनी पहले ही शुरू कर चुकी है। इस महीने इसका चिकित्सीय परीक्षण शुरू किया जाएगा। जाइडस ने भी कोविड-19 के लिए पेगीलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2बी के परीक्षण के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग से संपर्क किया है।