नई दिल्ली। भारत के दवा उद्योग का FY24 में निर्यात वर्ष 2023-24 में 10.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 28 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। दरअसल, अमेरिका और यूरोप दवा के अत्यधिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। वहीं, अफ्रीका के देशों में मांग के फिर से जोर पकडऩे के चलते दवा उद्योग का निर्यात बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
दवा निर्यात संवर्द्धन परिषद (फार्मेक्सिल) के अनुसार भारत का दवा निर्यात वित्त वर्ष 2023 में 3.2 प्रतिशत से बढक़र 25.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इस अवधि में निर्यात प्रमुख तौर पर यूरोप और अमेरिका के कारण बढ़ा था। इस दौरान अफ्रीकी क्षेत्र को निर्यात 5.4 प्रतिशत गिर गया था। जाम्बिया, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे, बुर्किना फासो आदि में मांग कम होने के कारण अफ्रीका को निर्यात गिरा था।
फार्मेक्सिल के अनुसार अप्रैल से अक्टूबर के दौरान दवा निर्यात 8.13 प्रतिशत बढक़र 1578.545 करोड़ डॉलर पहुंच गया। अक्टूबर में निर्यात 29.3 प्रतिशत बढक़र 242.436 करोड़ डॉलर को छू गया था और यह इस महीने में अब तक का सर्वाधिक निर्यात था।
बता दें कि वर्ष 2022-23 में अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में दवा निर्यात में 3.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। फार्मेक्सिल के महानिदेशक उदय भास्कर का कहना है कि अमेरिका और यूरोप के देशों में दवा की कमी जारी है। इससे इन देशों में निर्यात को बढ़ावा मिला। इसके अलावा अफ्रीका के देशों से भी फिर मांग आने लगी है। अप्रैल से अक्टूबर के दौरान अफ्रीकी देशों को निर्यात सालाना आधार पर छह प्रतिशत बढ़ा है।
अप्रैल से अक्टूबर में उत्तरी अमेरिका को निर्यात में 8.85 प्रतिशत का इजाफा हुआ जिसमें अमेरिका को होने वाला निर्यात 9.58 प्रतिशत बढ़ा था। यूरोप को होने वाले निर्यात में करीब 16 फीसदी का इजाफा हुआ। भारत के दवा निर्यात के तीन प्रमुख गंतव्य उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका हैं। भारत के कुल दवा निर्यात में इन तीन की हिस्सेदारी करीब 69 फीसदी है। इस अवधि में केवल सीआईएस क्षेत्र की वृद्धि दर नकारात्मक रही। स्वतंत्र राष्ट्रों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) को वृद्धि दर में 9.66 प्रतिशत की गिरावट आई। सीआईएस क्षेत्र में संकट जारी है। इससे सबसे बड़े बाजार में निरंतर गिरावट जारी है।
सूत्रों के अनुसार अमेरिका और यूरोप दवा के अत्यधिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। प्रयास किए जाने के बावजूद दवा की अत्यधिक कमी जारी है। इससे कई बीमारियों के इलाज में काम आने वाली दवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इनमें शरीर का वजन नियंत्रित करने वाली दवा, कैंसर की दवा, अटेंशन डिफिशिट/ हाइपरएक्टिविटी डिसआर्डर (एडीएचडी), एंटिबॉयोटिक्स और ह्रदय के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाएं हैं।’
एफडीए के दवा की कमी डेटाबेस दर्शाते हैं कि अमेरिका में कैंसर की दवाओं की कमी बरकरार है। कम आपूर्ति वाली दवाओं में सिस्प्लैटिन, कार्बोप्लैटिन, मेथोट्रेक्सेट, कैपेसिटाबाइन, क्लोफाराबिन, ल्यूकोबोरिन कैल्शियम और एजैसिटिडाइन शामिल हैं।’