मरीज जैसे ही अपनी बीमारी की वजह से डॉक्टर को दिखाने जाते हैं तो उनके मन में ना जाने कितने भ्रम होते हैं। मरीज को लगता है ना जाने उनकी बीमारी कैसे ठीक होगी। मरीजों का जैसे ही डॉक्टर के साथ संपर्क होता है तो डॉक्टरों से बातचीत करने पर उनका भरोसा बढ़ता है उन्हें लगता है कि वो अब जल्दी रिकवर हो जायेंगे। लेकिन आज के दौर में तो मरीजों की बात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बॉट से होती है। मरीजों और डॉक्टरों का जो मानवीय संपर्क है वो शायद AI के बस की बात नहीं है।
बीते दिनों ही अमेरिका में रहने वाली एक 49 वर्षीय महिला ब्लीडिंग की समस्या से परेशान थी। ऐसे में उसने अपने फैमिली डॉक्टर को कॉल किया लेकिन डॉक्टर को फोन करने पर उनकी बात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बॉट से हुई। महिला ने किसी एक एग्जीक्यूटिव से डॉक्टर से बात कराने को कहा तो पता चला कोई डॉक्टर खाली नहीं है।
9 हफ्ते तक महिला को किसी भी डॉक्टर का अपॉइंटमेंट नहीं मिला। ऐसे में मजबूरी में आकर उसे AI के साथ ही चर्चा करनी पड़ी।
AI ने उन्हें तमाम नसीहतों के साथ जीवनशैली में बदलाव करने तथा सतर्क रहने का सुझाव दिया। लेकिन अपनी बीमारी की वजह से परेशान महिला को इससे संतुष्टि नहीं मिली। इसलिए वे डॉक्टर से मिलने अस्पताल पहुंच गईं। डॉक्टर ने चेकअप के बाद उन्हें सीटी स्कैन कराने की सलाह दी हैं। दो दिन बाद उन्हें ई-मेल से सीटी स्कैन की रिपोर्ट मिली और सर्जरी करवाने की सलाह दी गई।
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सर्जरी से पहले काउंसिलिंग भी AI ही करता है। एनेस्थेसियोलॉजिस्ट या सर्जन से भी मरीज की बात नहीं होती। चार दिन बाद फिर ई-मेल आता है, जिसमें एक नंबर पर कॉल करने और बायोप्सी के नतीजे पता करने के निर्देश रहता है। बात कंप्यूटर जेनरेटेड AI से होती है। वह बताती हैं कि उन्हें मेटास्टेसिस के साथ हाई ग्रेड सीरस ओवेरियन कैंसर है। AI ही उपचार के विकल्प बताता है। इससे मरीज टूट जाती है। रोते हुए उनके हाथ से फोन गिर जाता है। उनके सांत्वना देने वाला भी कोई नहीं रहता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मरीजों को गंभीर बात बतानी है तो डॉक्टर्स को वन टू वन बातचीत करनी चाहिए। जामा मेडिकल जर्नल में प्रकाशित स्टडी बताती है कि मानवीय संपर्क मरीज की संतुष्टि और उपचार की सिफारिशों के पालन में प्रभावी होता है। मरीजों का डॉक्टरों के साथ संपर्क होना बहुत जरुरी है। मरीजों की संतुष्टि और साझा निर्णय-प्रक्रिया इस मानवतावाद पर निर्भर है।