पटना। दर्द से निजात दिलाने वाली एंटीबायोटिक दवाइयां कई बैक्टीरिया पर अप्रभावी सिद्ध होने लगी हैं। इसका स्पष्ट कारण एंटीबायोटिक का मिस्यूज होना माना जा रहा है। पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. एके जायसवाल के अनुसार लोग डॉक्टर से सलाह लिए बिना ही छोटी-मोटी बीमारियों में एंटीबायोटिक का सेवन कर रहे हैं। एंटीबायोटिक दवाओं का अधूरा यानी निर्धारित मात्रा से कम डोज लेने का नतीजा यह है कि नए पैदा हुए कीटाणु उक्त एंटीबायोटिक के प्रति इम्यून हो जाते हैं। उनका कहना है कि लंबे समय से किसी स्ट्रांग एंटीबायोटिक की खोज नहीं हुई है। यानी अभी हमारे पास जो एंटीबायोटिक उपलब्ध हैं, उनका असर ज्यादातर बैक्टीरिया पर नहीं पड़ रहा। यह मानवता के लिए ग्लोबल वार्मिग से बड़ा खतरा है। पॉल्यूट्री फॉर्म में मुर्गियों को एंटीबायोटिक दिया जाता है। ऐसी मुर्गियों के खून या मल से निकलने वाले बैक्टीरिया का भी मानव शरीर पर कुप्रभाव पड़ता है।

डॉ. एके जायसवाल ने उदाहरण देते हुए बताया कि बैक्टीरिया जनित टीबी की बीमारी पहले लाइलाज थी। इसके लिए एंटीबॉयोटिक की खोज हुई तो यह बीमारी छह माह में पूरी तरह ठीक होने लगी है। विडंबना यह है कि टीबी मरीज के एंटीबायोटिक का अधूरा डोज लेने से कुछ ऐसे बैक्टीरिया पैदा हो गए, जिन पर पुराने एंटीबॉयटिक प्रभावहीन हो गए हैं। इस बीमारी को मल्टी ड्रग रेसिटेंट टीबी कहा जाता है। इसके लिए भी नए एंटीबॉयटिक की खोज हुई है। लेकिन अब कुछ मरीजों में टीबी का टोटल ड्रग रेसिटेंट बैक्टीरिया पाया गया है। इससे मौत निश्चित है। इसके लिए दुनिया में कोई एंटीबायोटिक फिलहाल उपलब्ध नहीं है। यह चिंताजनक स्थिति है। डॉ. जायसवाल का कहना है कि अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में डॉक्टर की सलाह बगैर एंटीबायोटिक की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित है। भारत में भी यह नियम कड़ाई से लागू होना चाहिए। इसके अलावा मेडिकल साइंटिस्ट रिसर्च के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि स्ट्रांग एंटीबॉयटिक की खोज की जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि मरीजों को डॉक्टर की सलाह से ही एंटीबॉयटिक का सेवन करना चाहिए। डॉक्टर के बताए अनुसार एंटीबॉयटिक की सही और निर्धारित मात्रा का सेवन अवश्य करें। झोलाछाप डॉक्टर या कैमिस्ट की सलाह से एंटीबॉयटिक का सेवन करना सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।