रायपुर। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने एम्स के अमृत मेडिकल स्टोर में सैंपल लेने चाहे तो मोतियाबिंद सर्जरी में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयां नहीं मिली। ड्रग विभाग के अफसरों का मानना था कि यह जानबूझकर की गई लापरवाही है। दूसरी ओर मेडिकल स्टोर संचालक ने बताया कि दवाओं का स्टॉक खत्म हो गया था। गौरतलब है कि एम्स में पिछले दिनों मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद पांच लोगों की आंखों में संक्रमण हो गया था। एम्स प्रशासन ने आनन-फानन में सभी मरीजों की छुट्टी कर दी थी।

मरीज अपने साधन से एमजीएम अस्पताल में भर्ती हुए थे। ऑपरेशन में जिन दवाओं का उपयोग डॉक्टरों ने किया, वह एम्स परिसर की ही अमृत फार्मेसी से खरीदी गई थी। दरअसल एम्स में इलाज कराने वाले लोगों को अस्पताल से कोई दवा नहीं मिलती है। लैंस से लेकर सीरिंज, निडिल, टेबलेट, ड्रॉप्स, इंजेक्शन मरीजों ने खरीदा। मामले का खुलासा होने के बाद ड्रग विभाग के तीन इंस्पेक्टर मेडिकल स्टोर गए और दवाओं का सैंपल मांगा। इस पर वहां मौजूद कर्मचारियों ने कह दिया कि ऑपरेशन में उपयोग की गईं दवाइयों और लैंस का स्टॉक खत्म हो गया है।

इसे लेकर ड्रग इंस्पेक्टर व कर्मचारियों के बीच विवाद भी हुआ था। इंस्पेक्टर ने सख्ती दिखाई तो दवा के सैंपल दिए गए। बाकी दवाओं के बारे में कहा गया कि मोतियाबिंद के ऑपरेशन में इन्हीं दवाओं के उपयोग के कारण संबंधित बैच की दवा खत्म हो गई है। उधर राजनांदगांव के क्रिश्चियन फेलोशिप अस्पताल में जिस एमबी डेक्सा (डेक्सामेथासोन) इंजेक्शन को लगाने के बाद 30 लोगों की एक आंख की रोशनी जाने की आशंका है, उस पर पूरे प्रदेश में बैन लगा दिया गया है। अभी तक कोलकाता नेशनल लेबोरेटरी से इसकी रिपोर्ट नहीं आई है। सोलन हिमाचल प्रदेश में बने इंजेक्शन का बैच नंबर एमवी 7 जे 38, निर्माण की तारीख अक्टूबर 2017, एक्सपायरी डेट सितंबर 2019 है। यह वायल 30 मिलीमीटर का है। इंजेक्शन मार्टिन एंड ब्राउन बायो साइंस कंपनी की है। डूमरतराई की श्रीगणेश एजेंसी ने विभिन्न जिलों के स्टॉकिस्ट को 2000 से ज्यादा वायल बेचे थे। एजेंसी ने यह इंजेक्शन वापस मंगवाया था। केवल 35 वायल वापस आए। बाकी बिक चुके थे।