नई दिल्ली। देश को मेडिसिन की भारी कमी से जूझना पड़ सकता है। छोटी दवा कंपनियां बंद होने के कगार पर आ गई हैं। इससे दवाओं की कीमतें भी बेतहाशा बढऩे की आशंका है। इन सबके पीछे स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दवाओं की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए हाल ही में बनाए गए कुछ नियम जिम्मेवार बताए जा रहे हैं।

शेड्यूल एम में बदलाव को लेकर नोटिफिकेशन

कई मीडियम और स्माल फार्मा कंपनियों का कहना है कि वे सरकार के नए नियमों का पालन करने की स्थिति में नहीं हैं। इनके चलते कई यूनिट्स बंद हो सकती हैं। बता दें कि हेल्थ मिनिस्ट्री ने शेड्यूल एम में बदलाव को लेकर एक नोटिफिकेशन जारी किया था। इसे सभी दवा कंपनियों के लिए अनिवार्य बनाया गया है।

गौरतलब है कि स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने बीते साल कहा था कि शेड्यूल एम को सभी माइक्रो, स्मॉल और मीडियम कंपनियों के लिए चरणबद्ध तरीके से अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 250 करोड़ रुपये से अधिक सालाना टर्नओवर वाली कंपनियों को एक अगस्त, 2023 से छह महीने के भीतर मानकों को लागू करना जरूरी है। छोटी कंपनियों को इसके लिए एक साल का समय दिया गया है।

रिवाइज्ड शेड्यूल एम को लागू करना आसान नहीं

लघु उद्योग भारती के प्रतिनिधि संजय सिंगला का कहना है कि छोटी और मंझोली कंपनियों के लिए रिवाइज्ड शेड्यूल एम को लागू करना आसान नहीं है। सभी कंपनियां क्वालिटी में सुधार के लिए तैयार हैं लेकिन इसमें बहुत खर्च आएगा। इस प्रोसेस में कई कंपनियां बंद हो जाएंगी। इससे देश में दवाओं की कमी होगी और उनकी कीमत बढ़ जाएंगी।

यह है समस्या

पंजाब ड्रग मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन का कहना है कि बताया गजा रहा है कि छोटी और मंझोली कंपनियों को संशोधित नियमों को लागू करने के लिए बहुत कम समय दिया गया है। छोटी कंपनियों के लिए नए नियमों को लागू करना चुनौतीपूर्ण है। इससे नियर टर्म में उनका कैपेक्स बढ़ जाएगा। उनकी ऑपरेटिंग कॉस्ट में भी बढ़ोतरी होगी। इससे एनएलईएम में शामिल जरूरी दवाओं को बनाना मुश्किल होगा। दवाओं को बनाने की लागत बढऩे से उनकी कीमतें भी ज्यादा हो जाएंगी।