हल्द्वानी। क्षेत्र में कोई डॉक्टर या अस्पताल नहीं होने के बावजूद यहां दवा की 45 से अधिक दुकानें खुली हुई हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इन दुकानों में दवा बेचने के लिए डॉक्टर की पर्ची का पालन होता होगा? इन दुकानें में नियमों की स्थिति क्या है, लाइसेंस देने के बाद संबंधित औषधि निरीक्षकों ने एक बार भी निरीक्षण करने की औपचारिकता पूरी नहीं की। ऐसे में मनमानी करने का खुलेआम मौका दिया जा रहा है। जिम्मेदार औषधि निरीक्षक फोन तक रिसीव नहीं करते हंै। इसके अलावा बिंदुखत्ता, कालाढूंगी, लालकुआं, बैलपड़ाव क्षेत्र में कई दुकानें ऐसी हैं, जहां बिना लाइसेंस के भी दवाइयां बेचने की शिकायत पहुंच रही है। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती। नियम के अनुसार 80 फीसदी दवाइयां डॉक्टर की पर्ची पर ही बिकनी चाहिए। इसमें शेड्यूल एच, एचवन, जी, के, एक्सबी शामिल हैं। इसके साथ ही नारकोटिक्स यानी एनआरएक्स से संबंधित दवाइयां भी कोई दवा दुकानदार ऐसे ही नहीं बेच सकता है। टीबी की दवाइयों के लिए रजिस्टर मेंटेन करना है। इसमें लापरवाही पर छह महीने से दो साल तक की जेल का प्रावधान है।
इसके बावजूद निष्क्रिय औषधि विभाग को यह सब नहीं दिखता है। पुलिस-प्रशासन की ओर से कभी-कभी निरीक्षण करवाया जाता है, लेकिन औषधि निरीक्षकों की ओर से महज औपचारिकता निभा दी जाती है। अपने स्तर से रूटीन निरीक्षण तक नहीं किया जाता है। उत्तराखंड के औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह ने बताया कि बैठक में कई बार अनावश्यक लाइसेंस न बांटने के निर्देश दिए गए हैं। फिर भी बांट दिए जा रहे हैं। इस मामले में पूरी रिपोर्ट मांगी जाएंगी। नवंबर में फिर बैठक कर आवश्यक निर्देश दिए जाएंगे। वहीं, नैनीताल के  जिलाधिकारी वीके सुमन ने कहा कि इस मामले में तकनीकी जानकारी नहीं है। पता किया जाएगा। जांच करवाई जाएगी। नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष उमेश जोशी का कहना है कि सरकार को स्पष्ट दवा नीति बनानी चाहिए। अंधाधुध लाइसेंस बांटने के बजाय नीति के तहत ही बांटे जाने चाहिए। कई जगह इसका दुरुपयोग भी हो रहा है।