रोहतक। मच्छरजनित रोग डेंगू का जड़ से खात्मा करने के लिए बाजार में मिलने वाली एक सस्ती दवा मौजूद है। इस बीमारी में एंटीबायोटिक दवाएं लेने से बचना चाहिए। ये जानलेवा हो सकती हैं। डेंगू का नाम सुनते ही अधिकतर लोगों को बुखार चढ़ जाता है। वहीं, लोग बुखार आने पर एंटीबायोटिक दवाएं लेने लगते हैं। माना जाता है कि इन एंटीबायोटिक दवाओं से बीमारी जल्द ठीक हो जाती है। लेकिन कई बार ये जानलेवा साबित हो जाती हैं। डेंगू होने पर भी अक्सर लोग एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करते हैं। यहां ध्यान देने की बात यह है कि डेंगू एक वायरल फीवर है और इसमें एंटीबायोटिक दवाएं लेने से शरीर को गंभीर नुकसान हो सकता है। ऐसे में डेंगू होने पर कौन सी दवा लेनी चाहिए और ट्रीटमेंट कैसा होना चाहिए. इस बारे में जरूरी बातें डॉक्टर से जानते हैं.
रोहतक के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश खोसला का कहना है कि डेंगू एक वायरल फीवर है। इसका इलाज सही तरीके से होने पर एक से दो सप्ताह में रिकवरी हो सकती है। दिसंबर माह तक मच्छरों का प्रकोप रहता है और उत्तर भारत में यह बीमारी साल के आखिरी महीने तक लोगों पर कहर बरपाती है। वे सलाह देते हैं कि डेंगू फीवर के दौरान लोगों को अपनी कंडीशन के अनुसार दिन में 2 या 3 बार पैरासिटीमोल टेबलेट लेनी चाहिए। यह दवा डेंगू रोग में सबसे सुरक्षित और असरदार है। इसके अलावा कोई अन्य दवा लेना नुकसानदायक हो सकता है। साधारणतया: डेंगू का इलाज पैरासिटामोल टेबलेट से ही किया जाता है।
डॉक्टर खोसला का कहना है कि डेंगू के लक्षण दिखने पर पेनकिलर, एंटीबायोटिक और एंटीवायरल दवाएं लेने से बचें। बुखार होने पर डॉक्टर की सलाह से ही दवाएं लेनी चाहिए। डेंगू होने पर ये दवाएं लेने से प्लेटलेट काउंट कम हो सकता है और कंडीशन गंभीर हो सकती है। डेंगू होने पर दर्द निवारक दवाओं और अन्य ओवर-द-काउंटर मिलने वाली दवाओं से खुद इलाज करने से बचना चाहिए। पेनकिलर्स से इंटरनल ब्लीडिंग हो सकती है। ऐसे में पैरासिटामोल ही सबसे बेहतर दवा है।