नई दिल्ली। भारत में कोरोना ने जिस तरीके से अपनी दूसरी लहर से लोगों में डर पैदा किया था। उसको लेकर कहीं न कहीं लोग सहम से गए है और लोगों को ये डर भी सता रहा है कि कोरोना कब और कैसे अपना नया रूप लेकर आ जाये किसी को नहीं पता। लेकिन इसी बीच एक अच्छी खबर भी सामने आई है। बता दें कि भारत में मिले कोरोना वायरस के वेरिएंट के खतरे को लेकर गुड न्यूज है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुरुवार को कहा भारत में सबसे पहले मिले कोविड-19 वेरिएंट, जिसे ‘डेल्टा’ वेरिएंट का नाम दिया गया है, उसका बस एक स्ट्रेन ही अब चिंता का विषय है, जबकि बाकी दो स्ट्रेन का खतरा कम हो गया है। कोरोना के इस वेरिएंट को B.1.617 के नाम से जाना जाता है और इसी की वजह से भारत में कोरोना की दूसरी लहर में इतनी अधिक तबाही देखने को मिली। यह ट्रिपल म्यूटेंट वेरिएंट है क्योंकि यह तीन प्रजातियों (लिनिएज) में है।
बीते महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के इस वेरिएंट के पूरे स्ट्रेन को ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ यानी चिंता वाला वेरिएंट बताया था, जिसके बाद भारत सरकार ने अपनी आपत्ति दर्ज की थी। मगर मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने कहा कि इसका बस एक सब लिनिएज ही अब चिंता का विषय है। यानी B.1.617 वेरिएंट के तीन स्ट्रेन में से बस एक स्ट्रेन चिंता का विषय है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अब बड़े स्तर पर पब्लिक हेल्थ के लिए B.1.617.2 वेरिएंट खतरा बना हुआ है, जबकि दूसरे स्ट्रेन के संक्रमण का प्रसार कम हो गया है।
दरअसल, कोरोना का B.1.617.2 वेरिएंट अब भी चिंता का विषय बना हुआ है, साथ ही वायरस के तीन अन्य वेरिएंट जिन्हें मूल संस्करण की तुलना में अधिक खतरनाक माना जा रहा है, क्योंकि वे अधिक संक्रामक और घातक हैं। बता दें कि इससे पहले संगट ने कहा था कि कोरोना वायरस के भारत में पहली बार पाए गए स्वरूप बी.1.617.1 और बी.1.617.2 को अब से क्रमश: ‘कप्पा’ तथा ‘डेल्टा’ से नाम से जाना जाएगा। दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस के विभिन्न स्वरूपों की नामावली की नई व्यवस्था की घोषणा की है जिसके तहत वायरस के विभिन्न स्वरूपों की पहचान यूनानी भाषा के अक्षरों के जरिए होगी। यह फैसला वायरस को लेकर सार्वजनिक विमर्श का सरलीकरण करने तथा नामों पर लगे कलंक को धोने की खातिर लिया गया।
दरअसल तीन हफ्ते पहले नोवेल कोरोना वायरस के बी.1.617 स्वरूप को मीडिया में आई खबरों में ‘भारतीय स्वरूप’ बताने पर भारत ने आपत्ति जताई थी उसी की पृष्ठभूमि में डब्ल्यूएचओ ने यह कदम उठाया है। हालांकि भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष स्वास्थ्य एजेंसी ने अपने दस्तावेज में उक्त स्वरूप के लिए ‘भारतीय’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है।
इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 के B.1.617.1 स्वरूप को ‘कप्पा’ नाम दिया है तथा B1.617.2 स्वरूप को ‘डेल्टा’ नाम दिया है। वायरस के ये दोनों ही स्वरूप सबसे पहले भारत में सामने आए थे। संरा स्वास्थ्य एजेंसी ने नामकरण की नई प्रणाली की घोषणा करते हुए कहा कि नई व्यवस्था, स्वरूपों के ”सरल, बोलने तथा याद रखने में आसान नाम देने के लिए है। उसने कहा कि वायरस के स्वरूप जिन देशों में सबसे पहले सामने आए, उन्हें उन देशों के नाम से पुकारना कलंकित करना और पक्षपात करना है।
इस तरह का एक स्वरूप जो सबसे पहले ब्रिटेन में नजर आया था और जिसे अब तक B.1.1.7 नाम से जाना जाता है उसे अब से ‘अल्फा’ स्वरूप कहा जाएगा। वायरस का B.1.351 स्वरूप जिसे दक्षिण अफ्रीकी स्वरूप के नाम से भी जाना जाता है उसे ‘बीटा’ स्वरूप के नाम से जाना जाएगा। ब्राजील में पाया गया पी.1 स्वरूप ‘गामा’ और पी.2 स्वरूप ‘जीटा’ के नाम से पहचाना जाएगा। अमेरिका में पाए गए वायरस के स्वरूप ‘एपसिलन तथा ‘लोटा के नाम से पहचाने जाएंगे। आगे आने वाले चिंताजनक स्वरूपों को इसी क्रम में नाम दिया जाएगा।
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि यह नई व्यवस्था विशेषज्ञों के समूहों की देन है। उसने कहा कि वैज्ञानिक नामावली प्रणाली को खत्म नहीं किया जाएगा और नई व्यवस्था, स्वरूपों के ”सरल, बोलने तथा याद रखने में आसान नाम देने के लिए है। इससे पहले, 12 मई को भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन मीडिया रिपोर्टों को ”निराधार बताते हुए खारिज कर दिया था जिनमें B.1.617 प्रकार को ‘भारतीय स्वरूप’ कहा गया था। उल्लेखनीय है कि इस स्वरूप को डब्ल्यूएचओ ने हाल में ‘वैश्विक चिंता’ वाला स्वरूप बताया था।