रोहतक : जिला सामान्य अस्पताल में एम्बुलैंस की स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी हृदय रोगी की वेंटिलेटर पर होती है। वेटिंलेटर पर जीवत रहने की उम्मीद हमेशा बनी रहती है। लेकिन, यहां एम्बुलैंस की मौत निश्चित है, तब भी उन्हें वेंटिलेटर के साहरे जीवित रखा जा रहा है। यहां हम बताने चाहते है कि हालत बद से बदत्तर तब होते है, जब अस्पताल की 12 जीवनदायिनी एम्बुलैंस में से 6 जीवन की तय समय सीमा समाप्त करने के बाद भी रोड़ पर जुगाड़ के साहरे दौड़ रही हैं। अपने बे-बाक तरीके से काम करने के लिए पहचाने जाने वाले स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के विभाग की ये हालते किसी से नहीं छिपी है। मामला, यही समाप्त नहीं होता। करीबन 4 माह पहले इसी स्थिति से पंजाब केसरी ने सबको अगाहा किया था, जिस वक्त उन्हें कंडम करने की सूची अधिकारियों की भेजी गई थी, आज भी स्थिति वहीं की वहीं बनी हुई। इन्हें कंडम घोषित करने की बजाए मरीजों की जान से खिलवाड़ करते हुए सडक़ पर दौड़ाया जा रहा है।
जरा सोचों, खट्टारा एम्बुलैस की वजह से किसी गंभीर मरीज की जान चली गई तो उसकी भरपाई जनता के प्रहरी स्वास्थ्य मंत्री कैसे, करेंगे। इसी तरह के कई सवाल आम जन के मस्तिष्क में दौड़ रहे है, जिनका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।

6 कंडम की सूची में, नहीं मिली अनुमति
सूत्र बताते है कि 4 माह पहले एम्बुलैंस को कंडम करने की सूची भेजी थी। लेकिन, अधिकारी उन्हें कंडम घोषित नहीं कर रहे है। जबकि इनकी स्थिति कंडम होने की लिमिट भी पार कर चुकी है। जुगाड़ के साहरे इन एम्बुलैंस को दौड़ाया जा रहा है।

इतने खर्च में मंत्री जी नई एम्बुलैंस खरीद लेते
जिला अस्पताल 6 एम्बुलैंस ऐसी है जो कंडम होनी लिमिट पार कर चुकी है। ये अपना अधिकत्तर समय मरीजों की सेवा में नहीं, बल्कि गैराज में बिताती है। इन पर मोटी रकम खर्च होती है। सच तो यह है कि जितना इनकी मरम्मत में खर्च हुआ है, उसमें थोडी ओर कीमत मिला दी जाएं तो नई एम्बूलैंस आ सकती है। सूत्र बताते है कि एम्बुलैंस के अधिकत्तर पार्ट घिस चुके हैं, जिससे पुरानी मशनरी में नया पूर्जा ठीक से फिट नहीं बैठता।

आपातकाल के बाहर से टो करके ले जानी पड़ी एम्बुलैंस
आपातकाल स्थिति के बाहर खड़ी एम्बुलैंस की हालत ये है कि, उसे टो करके गैराज में ले जाएगा। आपातकाल जैसे विभाग के बाहर इस तरह की एम्बुलैंस खड़ी होने से स्पष्ट होता है कि अगर, आपात स्थिति में एम्बुलैंस चाहिए तो आपका मरीज एम्बुलैंस के अभाव में दम ही तोड़ेगा।

निजी एम्बुलैंस वालों की चांदी: खराब एम्बुलैंस का खामयाज मरीजों को भुगतना पड़ता है, जिसका फायदा निजी एम्बूलैंस चालक उठाते है। जिले में करीबन 60 से अधिक निजी एम्बुलैंस है। रैफेर केस में निजी एम्बुलैंस चालक मन मानी कीमत मरीज के तिमारदारों से वसूलते है। आपातस्थिाति के चलते मजबूर तिमारदारों को मुहं मांगी कीमत देनी पड़ती है। एम्बुलैंस की खराब स्थिति अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठा रही। आखिरकार, समय रहते एम्बूलैंस की संख्या क्यों नहीं बढ़ाई गई।
भगवान ना करें कि ऐसा हो- सडक़ हादसे में गंभीर मरीज को लेकर दौडऩे वाली जीवनदायिनी एम्बूलैंस बीच रास्ते में खराब हो जाए। ऐसे मेें मरीज की जान खतरे में आ जाएगी, मौत भी हो सकती है। आपात स्थिाति में मरीज के लिए 1- 1 मिनट बेहद कीमती होता है, इलाज के अभाव में जान जा भी सकती। एक मिनट जान बच सकती है, खराब एम्बुलैंस जान ले सकती है

लापरवाही किसी की, गुस्सा ड्राईवर पर फूटता है: अंतिम सांस का इंतजार कर रही 6 एम्बुलैंस है। जिससे वे समय पर मरीज तक नहीं पहुंच पाती। गर्भवती महिलाओं के लिए निशुल्क एम्बुलैंस सुविधा है। पूरे जिले से काल आती है, जिससे समय पर एम्बुलैंस का पहुंच पाना मुशिकल हो जाता है। इतने में मरीज के तिमारदारों का गुस्सा सांतवे आसमान पर होता है, जिसका सामना ड्राईवर व एम्बुलैंस में मौजूद अन्य स्टाफ को करना पड़ता है।

108 में यह सुविधाएं होनी चाहिए: दो ऑक्सीजन सिलेंडर, ड्रेसिंग किट, प्रसव किट, ड्रीप चढ़ाने की मेडिकल साम्रगी होनी चाहिए। लेकिन, इनमें से किसी एम्बुलैंस आवश्यक सभी चीजे नहीं है। हर बार किसी न किसी का अभाव रहता है। औसतन 50 मरीज प्रतिदिन एम्बुलैंस सेवा का इस्तेमाल करते है
स्टाफ पूरा:एम्बुलैंस विभाग में स्टाफ की बात करें तो यहां पर 39 ड्राईवर, 4 आपरेटर व 24 ई.एम.टी. इमरजेंसी मेडिकल टैक्निश्यन कार्यरत है। तीन वाहनों पर एक रिलीवर स्टाफ रहता है।

मेरे संज्ञान में नहीं है पूछ कर बताता हूं: डॉ. रमेश कुमार
इस संबंध में सामान्य अस्पताल प्रभारी डॉ. रमेश कुमार से फोन पर बातचीत हुई। डा. रमेश ने कहा कि ऐसा मेरे संज्ञान में नहीं, संबंधित अधिकारी से बात करके ही बता पाउंगा।

पीजीआई में धूल फांक रही 3 नई ए.एल.एस. एम्बूलैंस
बीते वर्ष रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने प्रदेश के एक मात्र स्वास्थ्य संस्थान पी.जी.आई.एम.एस. को 3 नई एंडवांस लाईफ स्पॅाट एम्बुलैंस दी थी, एक एम्बुलैंस की कीमत 35 लाख रुपए है। लेकिन, इनकी मीटर रिडिंंग एक साल 6 माह में 3 से 4 हजार पर ही अटकी है। कारण, इन्हें चलाने के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं है। उधर, जिला सामान्य अस्पताल के पास स्टाफ है तो एम्बुलैंस नहीं है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के आलाअधिकारियों की सूझ-बुझ से जनता का आर्थिक भला किया जा सकता है। उस हालात में जहां प्रतिदिन 10 से 12 मरीज उच्च अस्पतालों में भेजे जाते है। समझने के लिए इतना काफी है कि अकेले पी.जी.आई. में 42 से अधिक निजी एम्बुलैंस खड़ी होती है। पंजाब केसरी से साभार