आज हम आपको प्रदेश के सबसे बडे राजनैतिक अखाडे रोहतक पीजीआई की ताकत के बारे में रूबरू कराते हैं। कहने को बेशक स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज सूबे के सेहत मंत्रालय की गद्दी के शहंशाह हैं, लेकिन असली मठाधीश यहां पर ही पाए जाते हैं। जिनका बाल भी बांका कर पाना किसी के भी बस की बात नहीं है।
आमतौर पर यहां डाक्टरों की मनमानी की खबरें पूरे प्रदेश की जनता देखती है, लेकिन आज हम आपको जो बताने जा रहे हैं, वह किसी हैरत से कम नहीं है। पीजीआईएमएस रोहतक 1963 में बना था, उसके बाद इसका दायरा लगातार बढता गया और विभागों की संख्या भी। 2008 में इसे एक हैल्थ यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया गया, जिसे आजकल पंडित भगवत दयाल शर्मा हैल्थ साईंस विवि के नाम से जाना जाता है।
ये एक सामान्य बात है, लेकिन जो असली मुद्दा है, वह ये है कि यहां के कुछ डाक्टरों में कुर्सी का मोह इस कदर है कि एक बार मिल जाए तो कुर्सी टूट बेशक जाए, लेकिन छोडेंगे नहीं। वीसी, बनना हो या फिर डायरेक्टर या मैडीकल सुपरिडेंट। नेताओं के दरवाजों पर परिक्रमा करने के लिए दिल्ली से लेकर चंडीगढ तक ऐसी रफ्तार पकड लेते हैं कि जिन्हें देखकर फार्मूला-वन चैम्पियन माइकल शूमाकर भी पसीना-पसीना हो जाए।
आजकल ऐसा ही एक मुद्दा एचओडी की कुर्सी का बना हुआ है, हालांकि ये कुर्सी विभाग के सबसे सीनियर शख्स को मिलती है, लेकिन कब तक? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। यूजीसी और मैडीकल काऊंसिल ऑॅफ इंडिया की गाइडलाईन के मुताबिक हर तीन साल में रोटेशन के आधार पर एचओडी की जिम्मेदारी वरीयता के आधार पर बदली जाए। लेकिन यहां तो ज्यादातर ऐसे एचओडी हैं, जिन्हें एक बार कुर्सी मिल गई तो वापिस लेना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
इसको लेकर फरवरी में यूनिवर्सिटी की शैक्षणिक परिषद की मीटिंग में ये मुद्दा भी उठा था और उसके बाद प्रो-वाइस चांसलर डा. वी. के. जैन की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय कमेटी भी गठित की गई थी, लेकिन कमेटी की मीटिंग में इतना हंगामा हुआ, जितना विधानसभा में भी नहीं होता। मीटिंग दूसरी बार हुई तो उसमें भी कोई निष्कर्ष नहीं निकला, हां एक फैसला जरूर हुआ कि अगली मीटिंग में इस पर चर्चा की जाएगी।
पीजीआई में 40 से ज्यादा विभाग हैं और हर विभाग में एक एचओडी है और जो एक बार एचओडी बन गया, वह कुर्सी उसी सूरत में छोड सकता है, जब उसका प्रोमोशन हो जाए और वह उससे भी बडी कुर्सी पर पंहुच जाए। हैल्थ यूनिवर्सिटी के वीसी डा. ओपी कालडा रोटेशन फार्मूले को यहां लागू करना चाहते हैं, लेकिन फरवरी माह में तीन महीने का वक्त मुकर्रर करने के बावजूद आज तक खाली हाथ हैं, जो कमेटी गठित की गई थी, उसकी रिपोर्ट ही नहीं बन पा रही। अब बडा सवाल ये है कि कैसे होगी रोटेशन? क्या जूनियर अपने सीनियर की रिटायरमैंट तक बने रहेंगे जूनियर?
अन्दर की बात-दरअसल पीजीआई में जो एचओडी बन जाता है उसकी चौधर किसी विधायक से कम नहीं होती और जो एक बार बन गया तो उसे कुर्सी से तब तक नहीं हिलाया जा सकता, जब तक वह ऊंचे ओहदे पर न पहुंच जाए। फिलहाल हमें जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक रोटेशन प्रणाली को लागू करना यहां के वीसी के लिए टेडी खीर है, क्योंकि जो लोग दशकों से कुर्सी से चिपके बैठे हैं, वे इतनी आसानी से हार मान जाएंगे, ऐसा मुमकिन नहीं लगता। दूसरा यूनिवर्सिटी एक्ट में भी कुछ खामियां हैं, यहां कहने को तो हैल्थ यूनिवर्सिटी है, लेकिन इसके साथ-साथ पीजीआई डायरेक्टर का पद भी सर्जित किया गया है, जिसके पास मैडीकल की सारी प्रशासनिक शक्तियां मौजूद हैं। अब सवाल ये है कि ये यूनिवर्सिटी है या संस्थान। किसी भी यूनिवर्सिटी में वीसी का पद सबसे ताकतवर होता है, लेकिन यहां पीजीआई डायरेक्टर की शक्तियां भी कम नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर इसमें सारे नियम-कायदे यूनिवर्सिटी के ही लागू करने हैं तो डायरेक्टर का पद भी खत्म किया जाए। रही बात यूजीसी के नियमों की तो वहां से हैल्थ यूनिवर्सिटी को कोई ग्रांट नहीं मिलती तो उनके नियम लागू करना बाध्यता नहीं है। खैर कुछ भी हो, लेकिन विज साहब चाहें या वीसी साहब, लेकिन रोटेशन प्रणाली लागू करना जरा मुश्किल ही नजर आ रहा है।