नई दिल्ली। वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट का कहना है कि भारत में एलोपैथी की प्रैक्टिस कर रहे ज्यादातर डॉक्टर फर्जी हैं। खास बात यह है कि डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट को भारत सरकार ने भी स्वीकारा है। बता दें कि वर्ष 2016 में भारत के स्वास्थ्य कर्मियों पर डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा गया था कि देश में जितने डॉक्टर्स एलोपैथिक मेडिसिन की प्रैक्टिस कर रहे हैं, उनमें से 57.3 फीसदी के पास कोई मेडिकल क्वालिफिकेशन है ही नहीं। तब सरकार ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया था। लेकिन अब उसी स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस आंकड़े को औपचारिक तौर पर सही बताया है। हाल में लाए गए नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य पेशेवरों को अनुमति देने के लिए सरकार ने डब्ल्यूएचओ की उस पुरानी रिपोर्ट का सहारा लिया है।
नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट के संबंध में पीआईबी द्वारा जारी किए गए एक एफएक्यू में कहा गया है कि वर्तमान में एलोपैथिक मेडिसिन की प्रैक्टिस कर रहे 57.3 फीसदी लोगों ने मेडिकल की शिक्षा ली ही नहीं है। 2001 की जनगणना पर आधारित डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टिस करने वाले महज 20 फीसदी डॉक्टर्स ने मेडिकल की शिक्षा प्राप्त की है। इसमें ये भी बताया गया है कि प्रैक्टिस करने वालों में से 31 फीसदी तो ऐसे लोग हैं जिन्होंने सिर्फ कक्षा 12वीं तक की पढ़ाई की है। एफएक्यू में कहा गया है कि भारत की ज्यादातर ग्रामीण जनता के पास अच्छी स्वास्थ सेवा है नहीं है। वे फर्जी डॉक्टर्स के चंगुल में फंसे हैं। इस एफएक्यू में डब्ल्यूएचओ की साल 2016 की उसी रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसे सिर्फ डेढ़ साल पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने मानने से इनकार कर दिया था। लोकसभा में एक लिखित जवाब में 5 जनवरी 2018 को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा था कि यह रिपोर्ट भ्रम पैदा करने वाली है। मेडिकल की प्रैक्टिस करने के लिए पंजीकरण जरूरी होता है जो एमबीबीएस की डिग्री के बिना संभव नहीं है। उन्होंने ये भी कहा था कि इस तरह के नकली डॉक्टरों और झूठ से निपटने की पहली जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की बनती है।