नई दिल्‍ली। तीसरे चरण के परीक्षण के दौरान दी गई वैक्सीन की डोज के प्रतिकूल प्रभाव को लेकर चेन्नई के वालंटियर के दावे को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआइआइ) ने खारिज कर दिया है। इंस्टीट्यूट का कहना है कि आरोप बेबुनियाद और मनगढ़ंत हैं। इस आरोप के कारण छवि को पहुंचे नुकसान को देखते हुए इंस्टीट्यूट ने आरोप लगाने वाले वालंटियर पर 100 करोड़ रुपये का दावा ठोकने की बात कही है। दरअसल पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा किए जा रहे टीके के तीसरे चरण के परीक्षण से वालंटियर के रूप में जुड़े चेन्नई के एक 40 वर्षीय कारोबारी ने टीके की डोज लेने के बाद कथित रूप से गंभीर न्यूरोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल दिक्कतें उभरने का दावा किया है। इस मामले में उसने पांच करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा है। उसे एक अक्टूबर को चेन्नई के श्री रामचंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च में यह खुराक दी गई थी। वालंटियर की ओर से एक लॉ फर्म ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के महानिदेशक, डीसीजीआइ, सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन, एस्ट्राजेनेका यूके के सीईओ, ऑक्सफोर्ड यूनिवíसटी के टीके के परीक्षण के चीफ इंवेस्टिगेटर प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड तथा श्री रामचंद्र हायर एजुकेशन एंड रिसर्च के वाइस चांसलर को कानूनी नोटिस भेजा है। वालंटियर ने पांच करोड़ रुपये के हर्जाने के साथ ही टीके के परीक्षण, उत्पादन और वितरण पर तत्काल रोक लगाने की मांग भी की है। आइसीएमआर के महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख डॉ. समिरन पांडा ने कहा कि संस्थान की एथिक्स कमेटी और डीसीजीआइ दोनों पड़ताल कर रहे हैं। उससे पहले कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। सीरम इंस्टीट्यूट का कहना है कि वालंटियर झूठे तरीके से अपनी मेडिकल समस्याओं को टीके से जोड़ रहा है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआइ) और इंस्टीट्यूशनल एथिक्स कमेटी ने इस संबंध में पड़ताल शुरू कर दी है। डीसीजीआइ और कमेटी इस बात की पड़ताल करेंगे कि जिस प्रतिकूल प्रभाव का दावा किया गया है, उसका संबंध टीके की खुराक से है या नहीं। एसआइआइ ने कहा है कि टीके के ट्रायल का उसकी स्थिति के साथ कोई संबंध नहीं है। कंपनी ने यह भी कहा है कि वह मजबूती के साथ ऐसे आरोपों से अपना बचाव करेगी।