इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, एग डोनेशन में करीब 8 प्रतिशत महिलाओं की मौत हो जाती है। इसलिए डोनर महिला के पति को जानकारी जरूर दी जानी चाहिए। इस प्रक्रिया में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। क्योंकि इस दौरान महिला को एलर्जी, यूटरस में सूजन, पेट में दर्द आदि की परेशानियां हो सकती है, जिसमें लापरवाही हो तो जिंदगी खतरे में पड़ जाती है।
पंचकूला: सेरोगेसी बैन को लेकर अभी केंद्रीय कानून को लेकर बहस चल ही रही थी कि हरियाण में किराए की कोख के बड़े कारोबार का सच उजागर हुआ है। एग डोनेशन के नाम पर राज्य में सक्रीय रैकेट हर महीने 15 करोड़ रुपए तक कमा रहे हैं। अनपढ़ महिलाओं को पैसे का लालच देकर फांसने वाले दलाल उन्हें लंबी उम्र तक अपना ग्राहक बना लेते हैं, कई जिलों में महिलाओं ने इस बात को स्वीकारा है। रूटीन चैकअप के लिए निजी अस्पतालों में पहुंचने वाली युवा शादीशुदा को चिकित्सक समझाते हैं कि एग डोनेशन में उन्हें किसी तरह का खतरा नहीं। नि:संतान दंपतियों के नाम पर महिलाओं को इमोशनल भी किया जाता है।

रैकेट से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि एग डोनेट करने वाली महिला को 15 हजार रुपए दिए जाते हैं। यदि वह किसी और महिला को लाती है तो 10 हजार अलग से दिए जाते हैं। एक जिले से दूसरे जिलों में भी महिलाओं को भेजा जाता है। डॉक्टर कहते हैं कि यह कोई अपराध नहीं है, लेकिन यह जरूरत और विधि अनुसान होना चाहिए। लेकिन इस आड़ में हॉस्पिटल, डॉक्टर, एजेंट और डोनर का रैकेट बना कर लालच का धंधा करते हैं, जो अपराध है। एग डोनेट करने वाली महिला को 15 से 20 हजार देने वाला डॉक्टर बच्चा चाहने वाले दंपति से डेढ़ से दो लाख रुपए वसूलता है।
लेडी एजेंट को 25 हजार के करीब मिलते हैं। पूर्वी राज्यों की महिलाएं यहां के कई जिलों में इससे जुड़ी हैं। इस पर रोक के लिए यूपीए-2 की सरकार में 2010 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने एआरटी सेंटर रेग्युलेटरी एक्ट-2010 बनाया, लेकिन यह बिल अभी तक फाइलों में धूल फांक रहा है। नियम: कोई भी महिला छह बार से ज्यादा एग डोनेट नहीं कर सकती। डोनेशन के बीच तीन माह का अंतराल जरूरी है। शादीशुदा महिला के लिए पति की भी रजामंदी लेना भी जरूरी है। 21 से 35 साल की स्वस्थ महिला ही एग डोनेट कर सकती है। एग डोनेशन में पैसों का लेन-देन कानूनन अपराध है। इसमें लिप्त डॉक्टर और डोनर को तीन से 5 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। एआरटी/आईवीएफ सेंटरों की मॉनिटरिंग के लिए राज्य सरकारों को स्वास्थ्य महकमे को गाइडलाइन देना होगा। तभी सुधार की गुंजाइश बनेगी।