मंडी
स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने के कारण देश में 7 करोड़ लोग हर साल गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं।
स्वास्थ्य खर्च का 70 प्रतिशत हिस्सा लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। भारत की गिनती दुनिया के 190 देशों में उन आखिरी 10 देशों में आती है जो स्वास्थ्य पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1 फीसदी बजट ही खर्च करता है। इसका खुलासा जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय संयोजक और अखिल भारतीय जन विज्ञान नैटवर्क के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव डा. अमित सेन गुप्ता ने किया।
डा. गुप्ता जन स्वास्थ्य अभियान हिमाचल इकाई द्वारा आयोजित जन स्वास्थ्य के मुद्दों पर आयोजित कार्यशाला में प्रदेश भर से आए विभिन्न संगठनों के प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। सेन ने कहा कि सरकारी तंत्र में पूरी स्वास्थ्य सेवाएं न मिलने के कारण औसत जनता निजी स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर इलाज करवाने के लिए मजबूर है। जहां उन्हें अपने परिजन को 6 महीने जिंदा रखने के लिए भी अपनी जमीन, मकान और पशु तक बेचने पड़ते हैं। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर व्यंग्य कसते हुए डा. सेन ने कहा कि यहां स्थिति यह बन गई है कि बीमार हो जाओ तो स्वस्थ होने की आशा मत रखो।
डा. सेन ने कहा कि हमारा देश अन्य देशों के लिए एक शोध प्रयोगशाला बन कर रह गई है जहां विदेशी यह देखने के लिए आते हैं कि इतने अभाव में लोग यहां कैसे जिंदा रह सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जन स्वास्थ्य अभियान जिन सुविधाओं की मांग कर रहा है वह भीख नहीं है बल्कि जीने के लिए उनका बुनियादी हक है। डा. सेन ने स्पष्ट किया कि जन सुनवाई का यह काम किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि इन मामलों के जरिए व्यवस्था की खामियों को उजागर करना है।