बेंगलुरु। स्वास्थ्य मंत्रालय ने चार दुर्लभ रोगों के इलाज में चार 4 दवाओं के निर्माण को मंजूरी दी है। भारतीय दुर्लभ रोग संगठन (ओआरडीआई) ने मंत्रालय के इस फैसले को सराहा है। बता दें कि ये चार दुर्लभ रोग टायरोसिनेमिया-टाइप 1, गौचर्स रोग, विल्सन रोग और ड्रेवेट-लेनोक्स गैस्टॉट हैं। इन बीमारियों के इलाज के लिए भारत में ही चार दवाओं का निर्माण किया जा सकेगा।
ऑफ-पेटेंट दवा प्राथमिकता के आधार पर बनाई जाए
ओआरडीआई के सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक प्रसन्ना शिरोल ने इस फैसले की सराहना की है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने चार दुर्लभ बीमारियों के इलाज में सहायता के लिए जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई हैं। यह सबसे बड़ी राहत है। इससे देशभर में दुर्लभ बीमारियों के मरीजों को राहत मिलेगी। दुर्लभ बीमारी के रोगियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए इसी तरह की ऑफ-पेटेंट दवा को प्राथमिकता के आधार पर बनाना चाहिए।
ओआरडीआई ने आवेदन दिए थे
ओआरडीआई ने दुर्लभ बीमारियों के रोगियों के लिए सस्ती दवाओं तक पहुंच के लिए आवेदन दिए थे। इनमें से ज्यादातर दवाओं को आयात करना पड़ता है। उनकी कीमत भी ज्यादा होती है। इससे इलाज महंगा साबित होता है। मरीजों को देश के चुनिंदा अस्पतालों में ही विशेषज्ञों से सहायता चिकित्सा मिल पाती थी।
ओआरडीओ ने कहा कि यह भारत में दुर्लभ बीमारी के रोगियों को दवा उपलब्ध कराने का प्रशंसनीय प्रयास है। कई लोग ज्यादा कीमत के कारण इन दवाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। यह देश के लाखों दुर्लभ रोग के रोगियों में आत्मविश्वास और आशा का संचार करेगा।
13 दुर्लभ बीमारियों को प्राथमिकता
भारतीय फार्मा कंपनियों को दुर्लभ रोग दवाओं के जेनेरिक संस्करण बनाने में सहायता करने का कार्य 2022 में शुरू हुआ था। इसके लिए फार्मा कंपनियों और सीडीएससीओ और फार्मास्यूटिकल्स विभाग के साथ कई दौर की वार्ता हुई। इसके बाद सिकल सेल एनीमिया के साथ-साथ 13 दुर्लभ बीमारियों को प्राथमिकता दी गई। दवा निर्माताओं और औषधि महानियंत्रक के साथ बातचीत हुई। तब इन दवाओं को मंजूरी दी गई और इनकी कीमतें कम की गई।