गढ़वा। देश भर में कोरोना के खौफ के बाद लोगों को उससे बचने के लिए बस दवा का ही सहारा नजर आ रहा है। बताना लाजमी है कि इस संकट की घड़ी में भी लापरवाही के बड़े -बड़े मामले सामने आ रहे है। दरअसल कोरोना जैसी खौफनाक बीमारी से उभरने के लिए जरूरत पड़ने वाली दवाइयों को यूँ फेका जा रहा है। गौरतलब है कि दवा के अभाव में लोगों की मौतें हो रही हैं। अक्सर गरीब मरीज व उनके स्वजनों को इलाज कराने को लेकर दवा की खरीद करने में कर्ज तक की नौबत आ जाती है। उनमें से ऐसी दवाएं जो इस वक्‍त कोरोना से उबरने में लोगों के लिए सहायक हो रही है। विटामिन्‍स व इम्‍युनिटी बूस्‍टर की दवाएं। ऐसी दवाएं अगर आपको कहीं फेंकी हुई मिल जाए तो इसे आप क्‍या कहेंगे वो भी दस और सौ नहीं हजारों की संख्‍या में। सोमवार की अलसुबह कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला।

शहर के रंका रोड स्थित बस स्टैंड के समीप दानरो नदी के किनारे कचरे के ढेर में हजारों रुपये मूल्य की दवाएं फेंकी हुई थीं। इनमें आयकोलाइट पी बैच नंबर 605021 व डेक्ट्रोज स्लाइन की बोतलें बैच नंबर 904134, जिंकोविट सिरप बैच नंबर इटीएल- एफ 452 आदि फेंकी मिलीं। कुछ दवाएं नवंबर 2020 में तो कुछ मार्च 2021 में ही एक्सपायर हो चुकी थीं। वहीं जिकोमेक्स विटामिन सिरप अभी एक्सपायर नहीं था। वहीं कई दवाएं नदी की धारा में फेंकी गई थीं। लोगों का कहना था कि निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले लोग दवा की खरीद कर इस तरह से नहीं फेकेंगे। लेकिन गढ़वा जिला मुख्यालय में समय-समय पर हजारों रुपये की दवाएं कचरे के ढेर में फेंकी मिलती हैं। जबकि स्वास्थ्य विभाग इससे पल्ला झाड़ रहा है। उसका दावा है कि फेंकी गईं दवाएं स्वास्थ्य विभाग की नहीं हैं। फेंकी गई दवाओं पर कीमत प्रिंट किया गया है। गढ़वा के सिवि‍ल सर्जन डा कमलेश कुमार ने कहा कि दानरो नदी किनारे सरकारी दवाएं नहीं फेंकी गई हैं। वहां से मिलीं दवाओं पर कीमत पर प्रि‍ंट हैं। स्वास्थ्य विभाग में आपूर्ति की गई दवा पर गवर्नमेंट सप्लाई लिखा होता है। उसमें लिखा होता है बिक्री के लिए नहीं।