तिरुवनंतपुरम : अमृता विश्व विद्यापीठम ने कहा कि उसे उसके तीन प्रमुख अनुसंधान विभागों द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई ‘नैनोटेक्स बोन ग्राफ्ट’ नामक हड्डी के प्रायोगिक चिकित्सीय ​​परीक्षण की मंजूरी मिल गई है।

नैनोटेक्स बोन उन रोगियों के लिए अपनी तरह का पहला समाधान प्रदान करती है जो कैंसर या आघात के कारण जबडे़ की अपनी हड्डी का हिस्सा खो देते हैं।

विश्वविद्यालय ने कहा कि, “उत्पाद दांत प्रतिरोपण को भी स्वीकार कर सकता है जिससे रोगी मुंह की हड्डी के एक हिस्से को खोने के बाद लगभग सामान्य जीवन जी सकते हैं। यह दुनिया में अपनी तरह का पहला उत्पाद है और इसका पेटेंट कराया गया है।”

इसने कहा कि उत्पाद अमृता सेंटर फॉर नैनोसाइंसेज एंड मॉलिक्यूलर मेडिसिन, अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और अमृता स्कूल ऑफ डेंटिस्ट्री, कोच्चि द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।

विश्वविद्यालय ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा 17 मई को उत्पाद के लिए चिकित्सीय परीक्षण की मंजूरी दी गई थी।

इसने दावा किया कि यह भी पहली बार है कि भारत में किसी भी विश्वविद्यालय ने अपना स्वयं का चिकित्सा उपकरण उत्पाद विकसित किया है और भारत सरकार द्वारा इसके परीक्षण की अनुमति दी गई है। संस्थान ने कहा कि इस हड्डी उत्पाद के विकास में लगभग 10 साल का समय लगा।

बयान में कहा गया है कि विश्वविद्यालय में विकसित ‘नैनोटेक्स बोन ग्राफ्ट’ का उपयोग जबड़े की वृद्धि के लिए किया जा सकता है, जिससे जबड़े की हड्डी के कैंसर से प्रभावित लोगों में से 50-60 प्रतिशत को लाभ होगा।
इस पद्धति से उपचार में अधिक लागत नहीं आएगी, लेकिन रोगियों की जीवन गुणवत्ता में काफी वृद्धि होगी।