नई दिल्ली: चार साल पुराने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) में प्रस्तावित बदलाव के जरिए नॉन-शेड्यूल्ड ड्रग्स को भी प्राइस कंट्रोल के तहत लाया जा सकता है। दवा कीमतें काबू करने के लिए इस तरह की तैयारी हो रही है। पता चला है कि दवा कीमत तय करने के तरीके में बदलाव करने पर ही ऐसा संभव होगा। हालांकि दवा कंपनियां इसे गैर जरूरी कदम बता रही है। दवा कंपनियों के मुताबिक, अगर ऐसा हुआ तो इंडस्ट्री की ग्रोथ प्रभावित होगी। बाजार में प्रतिस्पद्र्धा के माहौल को नुकसान पहुंचेगा। अभी प्राइस कंट्रोल के तहत लगभग 370 दवाएं हैं। जो दवाएं कीमत नियंत्रण प्रणाली के दायरे से बाहर होती हैं, वह नॉन-शेड्यूल्ड ड्रग्स कहलाती हैं।
जानकारी के मुताबिक, नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) और फार्मास्युटिकल डिपार्टमेंट के प्रतिनिधियों ने जो प्रस्ताव बनाया है, उसमें नॉन-शेड्यूल्ड ड्रग्स को प्राइस कंट्रोल में लाने के अलावा आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में कीमत तय करने की मौजूदा प्रणाली बदलने का सुझाव भी दिया गया है। इसमें कहा गया है कि सभी ब्रांडेड और जेनरिक दवाओं के साधारण औसत को ध्यान में रखते हुए एक प्रतिशत से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी वाले ब्रांडेड दवा का साधारण औसत लिया जाए। भारतीय दवा कंपनियों की प्रतिनिधि संस्था इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस ने इस संशोधन को इंडस्ट्री में नुकसान पहुंचाने वाला करार दिया। अलायंस का कहना हैकि मौजूदा प्राइस कंट्रोल पॉलिसी के असर का आकलन किए बिना बदलावों पर चर्चा की गई। आईपीए के महासचिव डीजी शाह ने कहा कि डीपीसीओ 2013 को फिलहाल चलने देना चाहिए। चार साल में बदलाव करना जल्दबाजी भरा कदम होगा। दवा कंपनियों की तरफ से एनपीपीए चेयरमैन को मेल भेजी गई है जिसका जवाब आना बाकी है।
मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक, जिन कंपनियों ने 2013 के पहले कॉम्बिनेशन ड्रग्स (ये दवाएं आवश्यक सूची में हो सकता है कि न हों) लॉन्च की थी, वे प्राइस कंट्रोल के बाहर रहेंगी और जो कंपनी नई दवा लॉन्च करना चाहेगी, उसे ड्रग रेग्युलेटर के पास आवेदन करना होगा। ड्रग रेग्युलेटर रीटेल प्राइस तय करता है। हालांकि मौजूदा प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर कोई कंपनी ऐसी दवा लॉन्च कर रही हो, जो एक शेड्यूल्ड और एक नॉन-शेड्यूल्ड ड्रग का कॉम्बिनेशन हो सकती हो तो रेग्युलेटर उस दवा की कीमत तय करेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि जिन कंपनियों ने 2013 के पहले इसी तरह की दवाएं बाजार में उतारी होंगी, उन्हें करंट सीलिंग प्राइस का पालन करना ही होगा। नए बदलाव के तहत सीलिंग प्राइस की गणना उस मेन्युफेक्चरर की ओर से अप्लाई किए गए प्राइस के आधार पर होगी जो नई दवा के लिए सबसे पहले मंजूरी मांगेगी। पेटेंट दवाओं पर यह फॉर्मूला लागू नहीं होगा।