नई दिल्ली। विश्वभर में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे नंबर पर गिना जाने वाला भारत हेल्थ पर खर्च करने में काफी पिछड़ा हुआ है। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस की ओर से जारी की गई नैशनल हेल्थ प्रोफाइल में यह बात सामने आयी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार देश में डॉक्टरों की उपलब्धता न के बराबर है। इस मामले में भारत दुनिया के कई पिछड़े मुल्कों नेपाल, भूटान और श्रीलंका से भी पीछे है। देश के ग्रामीण इलाकों में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं।
नैशनल हेल्थ प्रोफाइल में सामने आया है कि भारत अपनी त्रष्ठक्क का एक फीसदी हिस्सा बमुश्किल सेहत पर खर्च करता है, जबकि भूटान अपनी 2.5 फीसदी, श्रीलंका 1.6 फीसदी और नेपाल 1.1 फीसदी खर्च सेहत पर खर्च करते हैं। इस रिपोर्ट में दक्षिण-पूर्व एशिया के 10 देशों को शामिल किया गया था जिसमें मॉलदीव पहले नंबर पर है जो अपनी त्रष्ठक्क का 9.4 फीसदी लोगों की सेहत पर खर्च करता है। हालांकि सरकार देश के 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख का हेल्थ कवर देने जा रही है। 2025 तक भारत का लक्ष्य है कि त्रष्ठक्क के 2.5 फीसदी हिस्से को पब्लिक हेल्थ एक्सपेंस पर खर्च किया जाए।
फिलहाल सरकार हर साल प्रति व्यक्ति की सेहत पर 1 हजार 112 रुपये ही खर्च कर पाती है। साल 2009-10 तक प्रति व्यक्ति सेहत पर खर्च सिर्फ 621 रुपये था जो बढक़र 1,112 हो गया है।  भारत में 11 हजार 82 लोगों की सेहत को दुरुस्त रखने के लिए मात्र 1 ऐलोपैथी डॉक्टर है। दिल्ली में 2 हजार 203 लोगों पर 1 ऐलोपैथी डॉक्टर है। सबसे बदतर स्थिति बिहार में है जहां 28 हजार 381 लोगों पर 1 डॉक्टर है। मलेरिया से होने वाली मौतों में कमी आयी है। 2016 में जहां मलेरिया से 331 लोगों की मौत हुई थी, वहीं 2017 में यह आंकड़ा घटकर 104 हो गया।