नई दिल्ली: फार्मा सेक्टर में हलचल पैदा करने वाले केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में सह सचिव रहे कुंदनलाल शर्मा द्वारा लिए गए 344 फिक्सडोज कंबिनेशन बैन को दिल्ली उच्च न्यायालय की सिंगल बैंच ने यह कहते हुए रद्द कर दिया कि बिना किसी परीक्षण, निष्कर्ष पर पहुंचे यह मनमानी और जल्दबाजी में थोपा गया आदेश है। उच्च न्यायालय में दाखिल 454 याचिकाओं पर कपिल सिब्बल और पी.चिदंबरम जैसे नामी वकील पैरवी कर रहे हैं।
बता दें कि 10 मार्च, 2016 को स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन दवाओं पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगाया था कि इससे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, जान का खतरा भी हो सकता है। तब फार्मा विशेषज्ञों और डॉक्टरों की रायशुमारी से कंबिनेशन दवाओं के अच्छे-बुरे प्रभावों को लेकर मेडीकेयर ने पड़ताल भी की थी। पड़ताल में भी विशेषज्ञों की इस फैसले पर एकराय नहीं मिली। कोर्ट ने फैसले में प्रतिबंध को ये कहते हुए खारिज किया है कि केंद्र सरकार इसकी कोई क्लिनिक परीक्षण रिपेार्ट पेश नहीं कर पाई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 300 से ज्यादा दवाओं के खिलाफ रोक लगाने के फैसले पर भी स्टे दिया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने फाइजर की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय के नोटिफिकेशन पर भी रोक लगाई थी और स्पष्ट किया था कि फाइजर के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए। सरकार का यह फैसला फाइजर के अलावा एबॉट, ग्लेनमार्क, वॉकहार्ट जैसी कई फार्मा कंपनियों की दवाओं पर प्रभावी असर डालने वाला तुगलकी फरमान जैसा था। मेडीकेयर न्यूज की वेबसाइट से दवा निर्माता तथा पाठक दिल्ली उच्च न्यायालय के “कंपलीट जजमेंट” को पढ़ सकते हैं।
डॉक्टरों में भी केंद्र सरकार के कंबिनेशन बैन निर्णय को लेकर मतभेद देखा गया। डॉक्टरों का कहना था कि जहां एक गोली से रोगी का इलाज होना संभव है, फैसला लागू हुआ तो उसी मरीज को उस एक रोग के लिए 8-10 गोली खाने को मजबूर होना पड़ेगा। मेडीकेयर न्यूज में इस बाबत समय-समय पर खबरें भी प्रकाशित हुई हैं। फिलहाल नोट बंदी से आए भूचाल के बीच भारत के फार्मा सेक्टर/दवा उद्योग में उच्च न्यायालय का यह ताजा फैसला राहत भरा साबित होगा।