रायपुर (छ.ग.)। छत्तीसगढ़ राज्य में मरीजों के अनुपात में चिकित्सकों की कमी पिछले कई वर्षों से बनी हुई है। इस कमी को दूर करने के लिए राज्य के कई जिलों में नए मेडिकल कॉंलेजों की स्थापना भी की गई।
इन नए मेडिकल कॉंलेजों में कुछ सरकारी हैं, वहीं कुछ निजी मेडिकल कॉंलेज भी हैं। लेकिन इसे राज्य का दुर्भाग्य ही कहेंगें कि जिस उद्देश्य से इन मेडिकल कॉंलेजों की स्थापना की गई, उसकी पूर्ति ही नहीं हो पा रहीं हैं। दरअसल, राज्य के तीन मेडिकल कॉंलेजों को इस वर्ष एमबीबीएस की 500 सीटों पर दाखिले की अनुमति नहीं मिली हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एमसीआई की सिफारिश पर राज्य के तीन निजी मेडिकल कॉंलेजों शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज भिलाई (150 सीट), चंदूलाल चंद्राकर कॉंलेज दुर्ग (150 सीट), रिम्स रायपुर (150 सीट) की कुल 450 सीटों में इस वर्ष जीरो ईयर घोषित कर दिया है। वहीं, सिम्स बिलासपुर की कुल 150 सीट में से 50 सीटों की मान्यता रोक दी है। इस कारण राज्य में एमबीबीएस की कुल 500 सीटों का नुकसान होने के साथ ही इन पर दाखिला नहीं हो रहा है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के इस निर्णय पर चिकित्सा शिक्षा के आला अधिकारियों, चिकित्सकों व शिक्षा विशेषज्ञों का भी मानना है कि इस वजह से राज्य में मेडिकल में दाखिला लेना आसान नहीं रहा। सीटें कम होने से छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण कट ऑंफ भी बढ़ा। यह भी सत्य है कि इन तमाम मेडिकल कॉंलेजों की स्थापना व निर्माण में सरकार व निजी संस्थाओं के करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं। साथ ही, इन मेडिकल कॉंलेजों के अस्पताल में अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ही आधुनिक मशीन व उपकरण महानगरों के बड़े-बड़े अस्पतालों के समान होने का दावा भी इन कॉलेजों के प्रबंधन द्वारा किया जाता है। ऐसे में मेडिकल की 500 सीटों की कमी से राज्य व देश को अगले 5 वर्षों में मिलने वाले 500 चिकित्सकों की उपलब्धता पर रोक लग गई है।