जयपुर। जरूरतमंद मरीजों के लिए निजी स्तर पर खरीदी गई दवाइयों में गड़बड़ी की आशंका है। इन दवा के पैकेट्स पर निशुल्क दवा की सील चस्पा नहीं होने से इनको चोरी-छिपे बाहर निजी दुकानों पर भी वापस बेचा जा सकता है। यदि इन पर सरकारी सील लगी होगी तो ऐसा संभव नहीं हो पाएगा और महरूम रहने वाले रोगी के हाथ तक दवा पहुंच भी सकेगी। जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत जिले के सरकारी अस्पतालोंं में निशुल्क दवा पहुंचाई जाती है। जयपुर से सप्लाई होने वाली इन सभी दवाइयों पर निशुल्क दवा की मुहर लगी रहती है ताकि इनका कहीं दुरूपयोग नहीं हो और उपयोग भी केवल सरकारी अस्पताल में आने वाले रोगी ही कर सकें। इसके अलावा भी संबंधित सरकारी अस्पताल अपने निजी स्तर पर कई प्रकार की लाखों रुपए की दवाइयां खरीदते हैं ताकि अस्पताल पहुंचने वाला दवा के अभाव में खाली हाथ नहीं जाए। लेकिन, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों का मानना है कि निजी स्तर पर खरीदी जा रही दवा पर निशुल्क मुहर नहीं लगने से इनकी खपत बढ़ती जा रही है। अंदेशा है कि मरीज के लिए खरीदी गई दवा कहीं बाहर वापस बिकने के लिए तो नहीं जा रही है।
सील नहीं लगी होने के कारण मिलीभगत के जरिए इनको वापस बेचा भी जा सकता है। ऐसे में यदि इन दवाइयों की जांच विभागीय स्तर पर हो तो मामला पकड़ में भी आ सकता है। सरकारी अस्पताल में दवा की आपूर्ति बाधित होने व कम पडऩे की स्थिति में जिम्मेदारों को निजी स्तर पर भी दवा खरीदने का अधिकार दिया हुआ है जिसके बदौलत दवाइयां भी खरीदी भी जाती हंै। बदले में फंड से संबंधित कंपनी को भुगतान कर दिया जाता है, लेकिन निजी दवा खरीदने के बाद इन पर संबंधित को निशुल्क दवा की मुहर लगानी होती है। इसमें लापरवाही बरतने पर सरकारी दवा भी वापस बाहर जाने की संभावना बनी हुई है।कैल्शियम के 67 रुपए के पत्ते सहित बीपी, शुगर व बाकी कई तरह की दवाइयां हैं। जिनकी खपत अचानक बढ़ रही है और इन पर सरकारी मुहर नहीं लगाई जा रही है। इधर, बड़ी मात्रा में खरीद होने के बाद भी मरीज को काउंटर पर दवा नहीं मिलने के कारण उसे मजबूरी में बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है।