जयपुर। सरकारी अस्पतालों में मरीजों को बांटी जाने वाली मुफ्त दवाओं को लेकर चिकित्सा विभाग की भारी लापरवाही उजागर हुई है। बीते चार साल में गोदामों में रखी 900 तरह की दवाइयां एक्सपायर हो गईं। एक्सपायर हुई इन दवाओं की कीमत तीन करोड़ रुपए बताई गई है। अकेले जयपुर जिले में ही करीब 80 लाख रुपए की दवाइयां अवधिपार हो चुकी हैं। अब राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अधिकारी इस मामले को न केवल दबाने में लगे हैं, बल्कि इसके लिए अस्पताल प्रबंधक को जिम्मेदार ठहरा रहे हंै। कहा जा रहा है कि अस्पताल प्रबंधक दवाएं तो मंगवा लेते हैं, लेकिन न तो सूची लगाते हंै और न ही डॉक्टरों को लिखने के लिए ही कहते हैं।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत आईं सबसे ज्यादा दवाइयां जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, कोटा व भरतपुर में खराब हुई हैं। ये दवाएं जिलों में समय पर नहीं बांटे जाने के कारण गोदामों में पड़े-पड़े ही एक्सपायर्ड हो गईं। अब सवाल उठता है कि करोड़ों रुपए की दवाओं के एक्सपायर्ड होने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?
प्रदेश के ड्रग वेयर हाउस में एक्सपायर्ड होने वाली दवाओं में टिटेनस का टीका, इंसुलिन इंजेक्शन, विटामिन-बी कॉम्पलेक्स, मल्टीपल इलेक्ट्रोलाइट, सेक्शन कैथेटर्स, राइल्स ट्यूब, फोल्डेबल इंट्राआक्यूलर लेंस, पोटेशियम क्लोराइड, मिर्गी और स्वाइन फ्लू की दवा तक हैं। केवल टोंक और सवाई माधोपुर में ही करीब तीन लाख के इंसुलिन इंजेक्शन खराब हो गए। अकेले जयपुर में ही कैल्शियम की कमी को पूरी करने में काम आने वाले बीस लाख के कैल्शियम ग्लूकोनेट इंजेक्शन और मिर्गी के मरीजों को दी जाने वाली दो लाख की कार्बेमेजेपीन टेबलेट खराब हो गई। वहीं, 18 हजार के मल्टीपल इलेक्ट्रोलाइट और 18 हजार फोल्डेबल आक्यूलर लेंस भी गोदामों में ही अवधिपार हो गए। इस संबंध में राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अनिल गुप्ता का कहना है कि अभी में विभाग में नया हूं। इस पूरे मामले को समझने में मुझे थोड़ा समय लगेगा। इसलिए दवाओं के एक्सपायर्ड मामले के बारे में कुछ नहीं बता सकता। अधिकारियों की लापरवाही के चलते अवधिपार दवाओं को अब नष्ट करना पड़ेगा। इसकी कोई पॉलिसी नहीं होने से ड्रग वेयर हाउसों में ऐसी दवाओं का जखीरा जमा होता जा रहा है। इस कारण ड्रग वेयर हाउस में नई दवाओं को रखने में समस्या आ रही है।