नई दिल्ली। दिल के मरीजों में मैकेनिकल वॉल्व की बजाए टिशू वॉल्व ज्यादा फायदेमंद साबित हुआ है। टिशू वॉल्व के रिजल्ट पर देश के 10 अलग-अलग अस्पतालों में सौ मरीजों पर स्टडी के बाद कार्डिएक सर्जन इस नतीजे पर पहुंचे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि मैकेनिकल वॉल्व में मरीजों को जिंदगीभर दवा खानी होती है, लेकिन टिशू वॉल्व में 6 महीने के बाद किसी तरह की दवा नहीं खानी पड़ती। स्टडी से यह साबित हो गया है कि टिशू वॉल्व भारतीय मरीजों के लिए भी उतना ही फायदेमंद है, जितना वेस्टर्न मरीजों पर। स्टडी में शामिल मैक्स के कार्डिएक सर्जन डॉ. रजनीश मल्होत्रा ने कहा कि कई बार बचपन में रीम्यूटिक फीवर हो जाता है। इसकी वजह से जॉइंट और हार्ट वॉल्व पर भी असर होता है। कई बार समय पर इलाज नहीं होने से वॉल्व या तो सिकुड़ जाता है या फिर लीक होने लगता है। ऐसी स्थिति में पहुंचने के बाद वॉल्व बदलना पड़ता है। दुनियाभर में दो प्रकार के वॉल्व मौजूद हैं। एक मैकेनिकल, जो मेटल का होता है। दूसरा टिशू वॉल्व, यह जानवर के टिशू का बना होता है।
डॉक्टर रजनीश ने कहा कि मैकेनिकल वॉल्व की लाइफ ज्यादा होती है, लेकिन इसके साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसमें पूरी जिंदगी खून पतला करने वाली दवा खानी पड़ती है। साथ में हर महीने टेस्ट कराना होता है। इससे मरीजों को काफी परेशानी होती है।जो लोग सुदूर गांव या कस्बे में रहते हैं, अगर दवा पर निर्भर हैं तो पूरी जिंदगी दवा नहीं खा पाते। हर महीने टेस्ट भी नहीं करा पाते। उनकी दिक्कत और बढ़ जाती है, जब गांव या कस्बे में ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट गलत दे दी जाती है। डॉक्टर ने कहा कि वहां की रिपोर्ट पर पूरी तरह से विश्वास नहीं किया जा सकता।  डॉक्टर ने बताया कि दूसरा प्रोसीजर टिशू वॉल्व का है। यह बहुत सेफ है और सर्जरी के छह महीने तक ही दवा खानी पड़ती है। उसके बाद मरीज को किसी प्रकार की दवा की जरूरत नहीं होती और इसमें मरीज को हर महीने अपने ब्लड की जांच भी नहीं करानी पड़ती है। ब्लड पतला है या मोटा, यह जानने की जरूरत नहीं होती। यह भारतीय मरीजों पर भी इसका उतना ही फायदेमंद है जितना विदेशी मरीजों पर। जहां तक टिशू वॉल्व की लाइफ की बात है तो यंग मरीजों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और वो आसानी से 15 से 20 साल तक इससे ठीक रहेंगे। इसके बाद जरूरत पडऩे पर ही दोबारा टिशू वॉल्व लगाया जाता है।