मुंबई। दिल्ली हाईकोर्ट ने अमेरिकी फार्मा कंपनी एबॉट की याचिका को खारिज कर दिया है। कंपनी ने अपनी याचिका में डायबिटीज की दवा को लेकर गुटबंदी करने के आरोप की कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया की ओर से जांच रोकने की मांग की थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विभु बाकरु ने कहा कि एबॉट की दलील में कोई महत्व नहीं है। गौरतलब है कि करीब एक वर्ष पहले सीसीआई को एक व्हिसलब्लोअर से पत्र मिला था। पत्र में आरोप लगाया गया था कि डायबिटीज के उपचार वाली दवा विल्डाग्लिपटिन की कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए एबॉट, नोवार्टिस, एमक्योर और यूएसवी फार्मा गुटबंदी कर रही हैं। इस दवा की देशभर में कीमत तय करने के लिए इन कंपनियों के बीच समझौता हुआ है। इसके बाद सीसीआई के डायरेक्टर जनरल ने इन चारों फार्मा कंपनियों को नोटिस भेजकर उनसे इस दवा की बिक्री के बारे में विवरण मांगा था।
सूत्रों का कहना है कि सीसीआई कीमत को तय करने में इन कंपनियों के सीनियर एग्जिक्यूटिव्स के शामिल होने की भी जांच कर रहा है। ईटी ने फरवरी 2016 में रिपोर्ट दी थी कि एक व्हिसलब्लोअर ने इन आरोपों को लेकर सीसीआई और नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी को पत्र भेजा है। हालांकि, एबॉट ने अपनी याचिका में सीसीआई की जांच को चुनौती देते हुए कहा है सीसीआई को प्राप्त हुई ईमेल जाली थी और ड्रग प्राइसिंग रेग्युलेटर की ओर से दिया गया डेटा सटीक नहीं है। जस्टिस बाकरु ने अपने आदेश में कहा कि ईमेल के जाली होने के दावे की जांच सीसीआई के डायरेक्टर जनरल कर सकते हैं और एनपीपीए की ओर से उपलब्ध कराए गए डेटा की पुष्टि के बारे में सीसीआई ने पाया है कि कीमत में वृद्धि के तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, कीमत बढ़ाने की तिथियों को लेकर कुछ गलती हो सकती है। आदेश के अनुसार सीसीआई का मानना है कि याचिकाकर्ता और अन्य फार्मास्युटिकल कंपनियों के खिलाफ आरोप गुटबंदी का होने के कारण इसकी डायरेक्टर जनरल की ओर से जांच की जरूरत है। इस बारे में एबॉट का कहना है कि मामला अदालत में होने के कारण वह टिप्पणी नहीं करेगी।