हैदराबाद। घरेलू दवा कंपनियां नॉर्थ अमेरिकन मार्केट में बढ़ते प्राइसिंग प्रेशर के चलते चीन और जापान जैसे नए मार्केट में कारोबार की संभावनाएं तलाश रही हैं। नॉर्थ अमेरिकन मार्केट में लगभग एक तिहाई दवाएं एक्सपोर्ट करने वाली इंडियन फार्मा इंडस्ट्री अफ्रीका और यूरोपीय बाजारों पर फोकस बढ़ा रही है। भारतीय दवा कंपनियों को चीन के बाजार में ज्यादा एक्सेस दिलाने के लिए इंडियन रेगुलेटर चीन के नियामकों के साथ काम कर रहे हैं। फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (फार्मैक्सिल) के डायरेक्टर जनरल रवि उदय भास्कर ने कहा कि चीन में प्रॉडक्ट अप्रूवल में लगने वाला वक्त घटाने की कोशिश हो रही है। अमेरिकी बाजार में इंपोर्ट अलर्ट्स वगैरह की बड़ी बाधाएं नहीं होने के चलते कॉमर्स मिनिस्ट्री के अफसरों ने मौजूदा फिस्कल ईयर में फार्मा एक्सपोर्ट 19 अरब डॉलर रहने का अनुमान दिया है जो पिछले फिस्कल में 17.27 अरब डॉलर था। पिछले फिस्कल में इंडिया से सालाना आधार पर 2.92 फीसदी ज्यादा 16.67 अरब डॉलर का फार्मा एक्सपोर्ट हुआ था। मौजूदा फिस्कल ईयर में फार्मा सेक्टर का एक्सपोर्ट ग्रोथ पॉजिटिव रह सकता है। नॉर्थ अमेरिका को होने वाले एक्सपोर्ट में लगभग 14 फीसदी की बढ़ोतरी का हाथ होगा जहां पिछले फिस्कल में लगभग 8 फीसदी की गिरावट आई थी। भास्कर ने कहा कि इंडियन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब अमेरिकी मार्केट में प्राइसिंग घटने के चलते वैल्यू में गिरावट आने के बावजूद टोटल एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी हुई थी। 28 अक्टूबर 2018 तक इंडियन फार्मा एक्सपोर्ट सालाना आधार पर 12 फीसदी ग्रोथ के साथ $9.64 अरब से बढक़र $10.8 अरब हो गया था। इंडियन फार्मा इंडस्ट्री के लिए अमेरिका के बाद अफ्रीका, यूरोप जैसे दूसरे अहम बाजारों में रिवाइवल हुआ है।
इंडियन फार्मास्यूटिकल कंपनियां चीन में मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी लगाने की संभावनाएं तलाश करने में जुटी हैं। इनमें हेटरो लैब्स, अरबिंदो फार्मा, एमक्योर और ल्यूपिन जैसी कंपनियां शामिल हैं। चीन के रेगुलेटर्स से उनके यहां इंडियन दवा कंपनियों के कम से कम लाइफ सेविंग प्रॉडक्ट रजिस्ट्रेशन के लिए टाइमलाइन घटाने के लिए कहा जा रहा है। फार्मैक्सिल ने इंडियन फार्मा कंपनियों को चीन में हो रही दिक्कत के बारे में बताने के अलावा वहां ज्यादा एक्सेस के लिए चैंबर ऑफ कॉमर्स फॉर इंपोर्ट एंड एक्सपोर्ट ऑफ मेडिसिंस एंड हेल्थ प्रॉडक्ट्स के साथ मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग साइन की है। इंडियन रेगुलेटर्स अहम एक्टिव फार्मास्यूटिल इनग्रेडिएंट्स, इंटर मीडियरीज वगैरह को देश में ही तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर फॉरेक्स बचाने के लिए प्रोजेक्ट रिपोट्र्स तैयार कर रहे हैं। अभी चीन से ढाई अरब डॉलर के फार्मा प्रॉडक्ट्स का इंपोर्ट हो रहा है जबकि यहां से सिर्फ 20 करोड़ डॉलर का माल चीन भेजा जा रहा है।