नई दिल्ली। देश में दूध की गुणवत्ता को लेकर फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एफएसएसएआई) के सर्वे में 41 प्रतिशत सैम्पल गुणवत्ता और सुरक्षा के मानकों पर फेल साबित हुए हैं। इनमें से 7 फीसदी सैंपल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक पाए गए हैं। एफएसएसएआई ने सर्वे के लिए कच्चे और पैकेज्ड दूध दोनों ही तरह के नमूने लिए थे। एफएसएसएआई के सीईओ पवन यादव के मुताबिक दूध के सैम्पलों में न सिर्फ मिलावट पाई गई है, बल्कि ये हानिकारक पदार्थों से दूषित भी हैं। प्रोसेस्ड दूध के नमूनों में एफ्लॉक्सिन-एम1, एंटीबायोटिक और कीटनाशक ज्यादा मिले हैं। कुल 6,432 नमूनों में से 368 में एफ्लॉक्सिन-एम1 की मात्रा तयशुदा मानकों से ज्यादा मिली है, जो कुल सैम्पलों का 5.7 प्रतिशत है। दिल्ली, तमिलनाडु और केरल के नमूनों में इसकी मात्रा सबसे ज्यादा है। एफ्लॉक्सिन-एम1 एक तरह का फफूंद है, जिसके इस्तेमाल की इजाजत देश में नहीं है।
सर्वे के मुताबिक, कुल सैंपलों के 1.2 प्रतिशत में एंटीबायोटिक निर्धारित सीमा से ज्यादा है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश उन राज्यों में शामिल हैं, जहां दूध में एंटीबायोटिक की मात्रा ज्यादा पाई गई है। इसके साथ ही 7 प्रतिशत नमूनों में स्वास्थ्य के लिए गंभीर रूप से खतरनाक तत्वों की मिलावट है और इन्हें मानव उपयोग के लिए सुरक्षित नहीं पाया गया है। 41 प्रतिशत नमूने दूध की क्वालिटी के दो मानक लो फैट और सॉलिड्स नॉट फैट (एसएनएफ) पर खरे नहीं उतरे हैं। राहत की बात ये है कि 6,432 में से 5,976 नमूनों में मिलावट के बावजूद, मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक तत्व नहीं मिले हैं। इस तरह 93 प्रतिशत नमूने मानव सेवन के लिए सुरक्षित माने गए हैं। ताजा नतीजों के बाद, एफएसएसएआई ने डेयरी उद्योग को क्वालिटी मानकों का कड़ाई से पूरा करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही 1 जनवरी, 2020 तक हर स्तर पर निरीक्षण और परीक्षण सुनिश्चित करने को कहा है। एफएसएसएआई ने मई से अक्टूबर, 2018 के बीच 1,103 शहरों और कस्बों से दूध के नमूने लिए थे। क्कुल 6, 432 नमूनों की जांच की गई थी। दूध के ये सैम्पल सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के संगठित और असंगठित क्षेत्र के डेयरी उद्योग से लिए गए थे।