अम्बाला (बृजेन्द्र मल्होत्रा)। हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल के रजिस्ट्रार को डिसमिस करने का मामला सामने आया है। इससे बवाल मचा है। जानकारी अनुसार हरियाणा सरकार में एसीएस राजीव अरोड़ा ने कोर्ट के पुराने आदेशों का हवाला देते हुए हरियाणा स्टेट फार्मेसी कॉउंसिल के रजिस्ट्रार अरुण पराशर को डिसमिस कर दिया है। उन्होंने अपने आदेश में लिखा है कि रजिस्ट्रार पराशर बिना स्वीकृति के पदासीन हैं। उनकी नियुक्ति अवैध है जिसको चुनौती देने वाली एप्लिकेशन को न्यायालय ने 19 सितंबर 2019 को रद्द कर दिया था। अत: उक्त रजिस्ट्रार को न्यायालय के आदेश के आधार पर टर्मिनेट किया जाता है। बता दें कि 6 नवंबर 2019 को लिखित इस आदेश पर 8 नवंबर को हस्ताक्षर हुए हैं। जबकि समाचार लिखेे जाने तक भी आदेश की कॉपी रजिस्ट्रार /प्रेजिडेंट हरियाणा स्टेट फार्मेसी कॉउंसिल को नहीं मिली। जबकि अपदस्थ चेयरमैन ने 12 नवम्बर को प्रदेशभर में पहले फोन के जरिए जानकारी सार्वजनिक की, फिर डीजीएचएस हरियाणा को प्रेषित पत्र की कॉपी वायरल की।
इस बारे जब रजिस्ट्रार अरुण पराशर को जानकारी एवं पक्ष जानने के लिए सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि 19 अप्रैल 2019 के आदेशों के विरुद्ध 349-350/2019 के रद्द होने के बाद डबल बेंच पर सुनवाई जारी है। आगामी सुनवाई 27 जनवरी 2020 को होगी। ऐसे में एसीएस हरियाणा के टर्मिनेशन आदेश पत्र जारी करने पर कानूनी विशेषज्ञों की रॉय अनुसार कोर्ट के आदेशों की तौहीन बनती है। जब मामला न्यायालय के डबल बेंच पर विचाराधीन है तो ऐसे में सरकारी आदेश या तो इतने वरिष्ठ अधिकारी पर अनुचित दबाव दिलवाया गया या उन्हें अंधेरे में रख कर आदेश जारी करवाये गए। वायरल पत्र महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा को कॉपी भेजी गई। इसमें दर्शाया गया है कि जो छुट्टियों के चलते अभी तक उनके टेबल तक नहीं पहुंची और न किसी अन्य को मिली तो पत्र कैसे वायरल हुआ। वहीं, टर्मिनेशन पत्र बारे एसीएस राजीव अरोड़ा से बात करनी चाही तो उनका मोबाइल अनुत्तरित मिला।
दूसरी तरफ, हरियाणा स्टेट फार्मेसी कॉउंसिल के चेयरमैन धनेश अधलक्खा को इस पत्र की जानकारी नहीं है। रजिस्ट्रार अरुण पराशर ने बताया कि अभी तक ऐसे किसी भी पत्र की जानकारी उन्हें नहीं है, जब मसला न्यायालय के विचाराधीन है और कॉउंसिल ने मार्च 2020 तक उनकी कार्यावधि जनरल बॉडी बैठक में स्वीकृत की जिसे सरकार की अनुमति भी जारी की हुई है। यदि यह पत्र सही है तो वे स्वयं अचंभित हैं कि इतने वरिष्ठ अधिकारी सारी जानकारी होने के बाद भी गलती कैसे कर गए? उनके विवेक को कैसे धूमिल किया गया? इस बारे में पत्र मिलने पर ही कुछ कह पाएंगे।