चीन। कोरोना के खिलाफ़ भारत की जंग जारी है।  ढाई महीने से अधिक समय से चल रहे इस युद्ध में अभी तक भारत के खिलाफ कोरोना का पलड़ा भारी नहीं हो पाया है।  इस स्थिति के लिए देश का सार्थक नेतृत्व निस्संदेह इस श्रेय का अधिकारी है किन्तु कुछ और भी ऐसा है जो भारत की जीत को सुनिश्चित करता है और वह निस्संदेह भारतीयों की मानसिक शक्ति या उनका आत्मविश्वास है।

एक अंग्रेजी अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के संक्रामक रोग विशेषज्ञ कोरोनावायरस के खिलाफ भारत की मजबूत स्थिति के लिए भारतीयों की मानसिक मजबूती को जिम्मेदार मानते हैं।  चीन के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ झांग वेनहोंग ने भारत में चीनी छात्रों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कहा है, “ऐसा नहीं है कि भारतीय कोविड-19 से लड़ने के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं बल्कि वे मानसिक रूप से स्वस्थ हैं।” उन्होंने कहा, “भारतीयों का शांतिपूर्ण दिमाग है।” बकौल वेनहोंग, भारत में कोविड-19 के मामले 10% से अधिक नहीं होंगे। भारतीयों में इस बीमारी के खिलाफ मानसिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता है।

झांग वेनहोंग ने चीनी दूतावास द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन वीडियो बातचीत के दौरान कहा कि ‘मैंने एक बार समाचार में भारत की एक धार्मिक सभा को देखा था जहां लोग मास्क नहीं पहने थे। इसका मतलब ये नहीं था कि कोविड-19 के खिलाफ वो शारीरिक रूप से प्रतिरोधक हैं बल्कि वो मानसिक रूप से प्रतिरक्षा कर रहे हैं। ’

चीन के संक्रमण विशेषज्ञ का भारत के लिये ऐसा कहना महत्वपूर्ण इसलिये भी है क्योंकि जो कोरोना वायरस आज दुनिया भर में कोहराम मचा रहा है उसके चीन की ही वुहान लैब से निकलने की आशंका जताई जा रही है। झांग वेनहोंग अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चीन के संक्रामक रोग विशेषज्ञ हैं जो वर्तमान में चीन के लिये कोविड-19 के खिलाफ एक अहम रणनीतिकार की भूमिका निभा रहे हैं. झांग फिलहाल शंघाई में हुआशन अस्पताल के संक्रामक रोग विभाग में डायरेक्टर हैं।

चीन के इस चिकित्सा वैज्ञानिक ने कहा कि भारतीयों के मस्तिष्क में ही शांति है।  भारतीयों के दिमाग को शांतिपूर्ण करार देकर उन्होंने भारत के विश्व शांति के संदेश में अंतर्निहित शक्ति को समर्थन दिया है और इस शांति को भारतीयों की एक अहम सामर्थ्य के रूप में प्रस्तुत किया जो कोरोना महामारी के इस दौर में भारत के लिये सुरक्षा कवच की भूमिका में है।

झांग वेनहोंग के अनुसार अमेरिका की तुलना में भारत की जनसंख्या पांच गुना ज्यादा है।  इस नजरिये से यहां संक्रमण के मामले अमेरिका से पांच गुना अधिक होने चाहिये लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि इसका एकदम उल्टा है।  इतनी बड़ी आबादी वाले देश भारत में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ तो रहे हैं लेकिन संक्रमण की दर जनसंख्या के स्तर पर भी और वैश्विक परिदृश्य में भी वास्तव में बहुत कम है।