नई दिल्ली। चीन से आयातित कोविड-19 रैपिड टेस्ट किट को लेकर इसके वितरक और आयातक के बीच मुकदमेबाजी हो गई और दोनों दिल्ली हाई कोर्ट चले गए थे, लेकिन इस मुकदमेबाजी से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) को बेची गई इस किट में बहुत मोटा मुनाफा कमाया गया है। इस किट की भारत में आयात लागत 245 रुपये ही है, लेकिन इसे ICMR को 600 रुपये प्रति किट बेचा गया है, यानी करीब 145 फीसदी के मोटे मुनाफे के साथ।  दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस नाजमी वजीरी की सिंगल बेंच ने इसका दाम 33 फीसदी घटाकर इसे प्रति टेस्ट किट 400 रुपये में बेचने का आदेश दिया है।  इस कीमत पर भी वितरक को 61 फीसदी का मुनाफा मिलता है।  हाई कोर्ट ने इसे पर्याप्त बताया है।
असल में इस रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट के एकमात्र डिस्ट्रीब्यूटर रेयर मेटाबोलिक्स ने आयातक मैट्रिक्स लैब्स के खिलाफ एक याचिका दाखिल की थी।  मैट्रिक्स लैब्स ने इस किट को चीन के वोंडफो बायोटेक से आयात किया था। वि वाद इस बात पर था कि आयातक बाकी बची 2.24 लाख किट आईसीएमआर को नहीं भेज रहा।  आयातक मैट्रिक्स लैब्स ने ऐसी 5 लाख किट आयात की थीं, लेकिन उसका कहना है कि उसे 21 करोड़ रुपये (20 करोड़ प्लस जीएसटी) में से अभी सिर्फ 12.75 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया गया है।  एग्रीमेंट के मुताबिक आयातक को पहले बाकी बचे 8.25 करोड़ रुपये के भुगतान करने ​थे, लेकिन रेयर मेटाबोलिक्स ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर यह अनुरोध किया कि उसे बाकी बची 2.24 लाख किट दिलाई जाएं, ताकि वह आईसीएमआर को आपूर्ति करने का अपना एग्रीमेंट पूरा कर सके।
कोर्ट ने इस किट का रेट घटाने का आदेश दिया।  याचिकाकर्ता का कहना था कि त्रिपक्षीय समझौते के मुताबिक भारत में कोई और कंपनी इसका वितरण नहीं कर सकती।  कंपनी ने कहा कि उसने 12.75 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है जिसमें 5 लाख किट का फ्रेट चार्ज भी शामिल है।  रेयर मेटाबोलिक्स ने कहा कि बाकी माल मिलते ही वह पूरे पैसे का भुगतान कर देगी।