आगरा। निजी अस्पताल संचालक अपने परिसर में अवैध रूप में मेडिकल स्टोर का संचालन कर मरीजों को एमआरपी पर दवाइयां बेचकर लाखों कमा रहे हैं। जबकि ये दवाइयां बाजार में कम दामों पर मिल जाती हैं। लेकिन अस्पतालों में भर्ती मरीजों के तीमारदार इन दवाओं को बाजार से लेने की बजाए अस्पताल में ही खुले अवैध स्टोर से खरीदने को मजबूर रहते हैं। बता दें कि ज्यादातर अस्पतालों में बिना रजिस्ट्रेशन के ही मेडिकल स्टोर चल रहे हैं। इन मेडिकल स्टोर से मरीजों को एमआरपी पर दवाएं दी जाती हैं। ड्रिप सेट का थोक रेट 16 रुपये है, इस पर एमआरपी 138 रुपये तक है। ये भी एमआरपी से दिए जा रहे हैं। इसी तरह 500 रुपये की कॉटन का थोक रेट 80 से 100 रुपये है, इसकी एमआरपी ढाई गुना अधिक 250 से 280 रुपये तक है। इसी तरह से सस्ते और महंगे इंजेक्शन भी एमआरपी पर दिए जा रहे हैं। इससे इलाज का खर्चा बढ़ रहा है। औषधि निरीक्षक राजकुमार शर्मा का कहना है कि बिना पंजीकरण के अस्पताल में मेडिकल स्टोर संचालित नहीं किए जा सकते हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मरीजों से दवाओं की कीमत भी ज्यादा नहीं ली जानी चाहिए। औषधि विभाग की टीम ने बीते माह सरकार नर्सिंग होम में छापा मारकर बिना पंजीकरण के चल रहे मेडिकल स्टोर को सील कर दिया था। यहां से दवाएं भी जब्त की गईं थीं।