हनुमानगढ़। टाउन पुलिस ने एनडीपीएस के मामले में मनोचिकित्सक डॉ. विक्रम जैन सहित तीन जनों के खिलाफ विशिष्ट न्यायाधीश (एनडीपीएस) कोर्ट में चालान पेश किया। दरअसल सहायक औषधि नियंत्रक अशोक मित्तल के अनुसार बुप्रेनोरफिन दवा अधिकांश तौर पर उन लोगों को दी जाती है जिन्हे एक लत या ओपिओइड पर निर्भर है। इसका उपयोग अफीम, स्मैक आदि मादक द्रव्यों के सेवन को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसकी कम मात्रा भी काफी अधिक नशे का काम करती है।

बहुत ही पोटेंट साइकोट्रोपिक(अत्याधिक एनडीपीएस ) ड्रग है जिसका प्रयोग बड़ी सावधानी से किया जाना आवश्यक है। डॉक्टर के परामर्श के बिना इसका उपयोग बिल्कुल नहीं होना चाहिए। बतादें कि डॉ. विक्रम जैन हनुमानगढ़ के जाने-माने फिजिशियन डॉ. पारस जैन के बेटे हैं। यही नहीं जांच अधिकारी ने न्यूनतम मात्रा मानते हुए आरोपियों को थाना में जमानत देने के मामले को भी गंभीरता से लिया है और जांच अधिकारी के खिलाफ लिखते हुए जमानत के आदेश की प्रति एसपी को भिजवाने का आदेश दिया है।

टाउन सीआई रमेश माचरा ने आरोपी रोहताश पुत्र देवीलाल जाट, डॉ. विक्रम जैन व जैन हॉस्पिटल का कर्मचारी सुखदेव के खिलाफ एनडीपीएस कोर्ट में चालान पेश किया। खास बात है कि हनुमानगढ़ जिले का ऐसा पहला मामला है जिसमें किसी मनोचिकित्सक के खिलाफ नशीली दवाएं बेचने के आरोप में कोर्ट में चालान पेश हुआ है। कोर्ट ने जांच अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने के लिए एसपी को भी लिखा है। दरअसल गत एक अप्रैल 2020 को लॉकडाउन के दौरान टाउन थाना की एसआई संजूरानी और स्पेशल टीम ने संयुक्त कार्रवाई में बाइक सवार रोहिताश पुत्र देवीलाल जाट निवासी नरसिंहपुरा थाना घमूड़वाली जिला श्रीगंगानगर को गिरफ्तार किया था।

आरोपी के कब्जे से 50 नशीली टेबलेट बरामद हुई थी। इस मामले में पुलिस और ड्रग डिपार्टमेंट की टीम ने टाउन बस स्टैंड के पास जैन अस्पताल के प्रथम तल पर स्थित मेडिकल स्टोर संचालक और डॉ. विक्रम जैन से भी पूछताछ की। आरोपी ने पुलिस को दवा लाना बताया लेकिन पर्ची नहीं दिखा पाया। तलाशी में उसके कब्जे से टेबलेट के पांच पत्ते मिले जिस पर संदेह होने पर स्पेशल टीम के हरबंश सिंह ने एडीसी अशोक मित्तल व डीसीओ गौरीशंकर को भी मौके पर बुला लिया था। जांच में युवक के कब्जे से मिली दवाएं एनडीपीएस घटक की होना पाई गईं। मामले की जांच एसआई नवदीप सिंह को सौंपी गई थी।

दरअसल टाउन पुलिस ने आरोपी के कब्जे से जो नशीली दवाएं पकड़ी थी, उसकी मात्रा अधिक थी लेकिन जांच अधिकारी नवदीपसिंह ने इसे न्यूनतम मात्रा मानते हुए सभी आरोपियों को पुलिस थाना में ही जमानत मुचलका भरवा लिया था। जबकि नियमानुसार इस मामले में एक ग्राम मात्रा तक पुलिस जमानत ले सकती थी लेकिन इसमें 4.8 ग्राम मात्रा थी। हालांकि पुलिस ने जांच के दौरान डॉक्टर और उसके कर्मचारी को इस लिए मुल्जिम माना था क्योंकि आरोपी के कब्जे से जो दवाएं बरामद हुई थी।

वह मनोचिकित्सक की पर्ची पर ही मिल सकती थी लेकिन उसके पास कोई पर्ची नहीं मिली थी। पूछताछ में यह सामने आया था कि आरोपी को डॉ. विक्रम जैन और सुखदेव ने नशीली दवा दी थी। दरअसल एडवोकेट रविंद्र जौल के मुताबिक न्यूनतम मात्रा होने पर संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपियों को पेश किया जाना चाहिए था और उसका चालान भी उसी कोर्ट में होता है।

मात्रा अधिक पाए जाने पर ही विशिष्ट न्यायाधीश (एनडीपीएस) कोर्ट में चालान पेश होता है।नियमानुसार इस मामले में पुलिस आरोपियों की जमानत मुचलका थाना में नहीं भर सकती थी। वाणिज्यिक मात्रा होने के कारण पुलिस आरोपियों को जमानत नहीं दे सकती थी। इसलिए इन आरोपियों के चालान एनडीपीएस कोर्ट में किया गया है।