कोटा। निजी दवा सप्लायर फर्म से मिलीभगत कर मेडिकल काॅलेज ड्रग वेयर हाउस में दवा बदलकर आमजन के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने के 4 साल पुराने मामले में एसीबी ने एफआईआर दर्ज की है। तत्कालीन ड्रग वेयर हाउस इंचार्ज डाॅ. महेंद्र कुमार त्रिपाठी, फार्मासिस्ट राकेश मेघवाल व मुकेश मीणा तथा ड्रग सप्लायर काे आराेपी बनाया है। डॉ. त्रिपाठी बूंदी में एडिशनल सीएमएचओ पद पर हैं। मामला यह था कि मुख्यमंत्री निशुल्क दवा याेजना के तहत वर्ष 2016 में हिमाचल की कंपनी मेडिपाेल ने काेटा मेडिकल काॅलेज ड्रग वेयर हाउस में 75 एमजी के प्रिगाबालिन कैप्सूल सप्लाई किए थे।आरएमएससीएल की जांच में पता चला कैप्सूल में प्रिगाबालिन नहीं बल्कि गामापेंटिन है। लैब ने सैंपल को पूरी तरह स्पूरियस माना। इसके बाद लीगल प्रक्रिया के तहत आरएमएससीएल ने राज्य के ड्रग कंट्रोलर को लीगल कार्रवाई के लिए ड्रग इंस्पेक्टर से दवा के सैंपल कलेक्ट कराने को कहा। डीसी के निर्देश पर ड्रग इंस्पेक्टर रोहिताश्व ने सैंपल लिया। तत्कालीन चिकित्सा मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने जांच के निर्देश दिए। इस पर औषधि नियंत्रक जयपुर ने दो सहायक औषधि नियंत्रकों संजय सिंघल व राजकमल छीपा को जांच दी थी। जांच के बाद डॉ. त्रिपाठी समेत अन्य पर संदेह व्यक्त किया था और माना कि कंपनी से मिलीभगत कर दवा बदली गई थी।
जांच के अनुसार, 3 मई व 12 मई 2016 को आरएमएससीएल मुख्यालय पर भिजवाए गए सैंपलों पर वर्टिकल रेड लाइन के बाहर या स्ट्रिप पर कहीं भी किसी भी प्रकार के मार्कर के निशान नहीं थे, ये सैंपल फेल हुए थे। जबकि 27 जून 2016 को लीगल सैंपलिंग हुई, तब लिए गए सैंपल पोर्शन पर वर्टिकल रेड लाइन के बाहर की तरफ ब्लैक मार्कर पेन से लाइन के चिह्न अंकित थे, यह सैंपल पास हुए थे।
26 जून 2016 को डाॅ. त्रिपाठी के कहने पर औषधि के निर्माता से मिलीभगत कर दवा बदल दी गई। औषधि बदलने के बाद जब 27 जून 2016 को लीगल सैंपलिंग हुई और पहले फेल पाई दवा इस सैंपल में पास हाे गई। दो लैब से भिन्न-भिन्न रिपोर्ट आने से डाॅ. त्रिपाठी का कंपनी से मिलीभगत कर सैंपल बदलना है।प्रिगाबालिन की एक गोली 13 से 14 और गामापेंटिन की 3 से 4 रुपए की होती है। दोनों दवाइयां नर्व सिस्टम प्रतिकूल होने पर दी जाती है। लेकिन दोनों का काम अलग-अलग होता है। एसीबी के एएसपी ठाकुर चंद्रशील ने कहा कि हमने ड्रग विभाग की कमेटी की जांच रिपाेर्ट भी प्राप्त की। वहीं, अपने स्तर पर तथ्य जुटाए, जिसमें साबित हाेता है कि मिलीभगत से दवा बदली। यह कंपनी काे बचाने के लिए किया, क्याेंकि दूसरा सैंपल पास हाेने से कंपनी कानूनी कार्रवाई से बच गई।