15 साल में नहीं हुआ कोई राष्ट्रीय सर्वे, 2001 में अंतिम सर्वे में पता लगा था, एक करोड़ लोग नशे की गिरफ्त में
नई दिल्ली
देश में नशीली दवाओं का कारोबार तेजी से बढ़ता जा रहा है। मीडिया में खबरे आम हो गई कि स्वास्थ्य एवं ड्रग विभाग ने नशीली दवाओं का जखरीरा पकड़ा, या फलां केमिस्ट नशीली दवा बेचता पकड़ा गया। विडंबना यह भी कि पकड़े जाने वाले लोगों को विभाग सजा नहीं दिलवा पाता, या यूं कहें कि वह भी नहीं चाहता कि उन्हें सजा मिले, वजह कई हो सकती हैं। वरना मौके से जब दवा पकड़ी जाती हैं तो फिर किन सबूतों के अभाव में वह छूट जाता है।
दूसरी तरफ बच्चों और युवाओं में नशे की बढ़ती लत सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या बनकर सामने आ रही है। एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि देश में नशा मनोरोग के इलाज के लिए सुविधाओं की बेहद कमी है। न पर्याप्त अस्पताल हैं और न पर्याप्त दक्ष डॉक्टर। मौजूदा समय में देश भर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के 124 अस्पतालों में नशा मनोरोग के इलाज की सुविधा है। इसके अलावा सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय के अधीन 400 नशा मुक्ति केंद्र हैं, जिसका संचालन गैर सरकारी संगठन करते हैं।
खैर, इस समस्या से निपटने के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने और डॉक्टरों की दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से एक साथ तीन बड़े चिकित्सा संस्थानों एम्स, निम्हांस व पीजीआइ चंडीगढ़ में नशा मनोरोग में सुपर स्पेशियलिटी कोर्स शुरू किया गया है। इससे नशा मनोरोग के इलाज के लिए सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टर तैयार हो सकेंगे। चिकित्सकों का कहना है कि कम उम्र में बच्चे नशे के ज्यादा शिकार हो रहे हैं, इसे रोकने के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए गए, स्थिति डरावनी हो सकती है। एम्स के नशा मनोरोग विशेषज्ञ और अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. अतुल अंबेकर के मुताबिक, पहले नशा मनारोग के लिए सुपर स्पेशियलिटी कोर्स नहीं था। इस वर्ष यह कोर्स शुरू किया गया है। एम्स में इसके लिए पांच सीटें हैं। इसके अलावा बेंगलुरु स्थित निम्हांस व पीजीआइ चंडीगढ़ में भी कोर्स शुरू किया गया है।