लखनऊ। मेडिकल स्टोर्स में कई गुना मंहगी दवाएं बिक रहीं है जबकि उनकी असली कीमत कुछ और ही होती है। ये जानना बेहद जरुरी है कि आखिर दवाओं के इतने दाम क्यों और कैसे बढ़ जाते है। लोगों को निजी मेडिकल स्टोरों पर दवाओं की लागत से कई गुना ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। केजीएमयू के हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड (एचआरएफ) स्टोर के मुकाबले निजी स्टोरों पर 88 फीसदी तक महंगी दवाएं मिल रही हैं।
एचआरएफ के इंचार्ज डॉ. एचएस पाहवा ने बताया कि यहां दवाएं सीधे निजी कंपनियों से खरीदी जाती है। केजीएमयू के साथ लोहिया और पीजीआई में भी सीधे खरीद से काफी छूट मिलती है। किसी डीलर या रीटेलर का मुनाफा नहीं होता और संस्थान भी कोई मुनाफा नहीं लेता। महज एचआरएफ कर्मियों का वेतन निकालने भर का मुनाफा लिया जाता है। इससे दवा की कीमत एक प्रतिशत भी नहीं बढ़ती। ऐसे में कंपनी से लगभग दाम के दाम दवा मिल जाती है। जानकारों के मुताबिक, एचआरएफ स्टोर के लिए सीधे कंपनी से दवाएं खरीदी जाती हैं।
इसके उलट निजी स्टोर पर एजेंटों, डिस्ट्रिब्यूटर और होलसेलरों के जरिए दवाएं आती हैं। ये सभी अपना-अपना मुनाफा लेते हैं। इस कारण एचआरएफ स्टोर पर जो दवा 12 रुपये में मिलती है, वही दवा निजी स्टोर पर 100 रुपये में मिल रही है। लखनऊ केमिस्ट असोसिएशन के प्रवक्ता विकास रस्तोगी ने बताया कि जो फार्मा कंपनी दवा बनाती है, सबसे पहले वही मुनाफा लेती है। इसके बाद हर प्रदेश में एक-एक कैरी ऐंड फॉरवर्ड एजेंट होते हैं, जो उस प्रदेश में दवा पर मुनाफा लेते हैं। इसके बाद डिस्ट्रिब्यूटर, होलसेलर और फिर रीटेलर होते हैं।
सबका अलग-अलग प्रॉफिट होता है। जानकारी के अनुसार, सबसे अधिक मुनाफा रीटेलर लेते हैं। केजीएमयू में हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड के तहत कई विभागों में मेडिकल स्टोर खोले गए हैं। लारी में ओपीडी के मरीज पर्चा दिखाकर दवा ले सकते हैं। इसी तरह शताब्दी, गांधी वार्ड, ट्रॉमा सेंटर, यूरॉलजी समेत अन्य विभागों में फिलहाल भर्ती मरीजों के लिए ही सुविधा है। इन स्टोर पर प्रिंट रेट के मुकाबले 50 से 80 फीसदी तक सस्ती दवाएं मिल रही हैं।