जयपुर। बाय वन-गेट वन इंजेक्शन के खेल में जहां फर्म फ्री के इंजेक्शन साढे़ तीन लाख रुपए में बेचती रही वहीं ड्रग विभाग के कई अधिकारी कार्रवाई की बजाय अपने ही ‘खेल’ में लगे रहे। 14 दिन पहले हुई कार्रवाई को पहले छिपाया गया। मामला खुला भी तो इंजेक्शन कितने मरीजों को कितने रुपए में बेचे गए? इसका खुलासा नहीं किया गया। जिन तीन फर्मों में गड़बड़ी मिली, उनमें से दो पर कार्रवाई नहीं की गई है। एक फर्म का लाइसेंस कैंसिल किया गया। नियमानुसार सभी फर्मों का लाइसेंस कैंसिल किया जाना था और एफआईआर दर्ज कराई जानी थी।
हैल्थ सेक्रेट्री के कहने पर ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा ने फर्म पर पांच अगस्त को जांच टीम भेजी। डीसीओ सिंधु कुमारी ने रिपोर्ट बनाकर 6 अगस्त को ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा और एडीसी दिवाकर पटेल को दी। रिपोर्ट में था कि होलसेल के बिल पर रिटेल में दवा बेची गई है। ड्रग कंट्रोलर ने एडीसी को फर्म पर कार्रवाई के लिए कहा।
फर्म को नोटिस दिया और लाइसेंस कैंसिल कर दिया। फर्म का लाइसेंस कागजों में निरस्त किया गया है, उनका कल तक ऑनलाइन निरस्तीकरण नहीं किया गया। लेकिन सवाल ये उठ रहे ड्रग विभाग की जांच में मेडिहब, वीके एंटरप्राइजेज और सुनीता मेडिकल एंड प्रोविजन स्टोर पर गड़बड़ी मिली। लाइसेंस केवल मेडिहब का कैंसिल किया गया। इन दोनों पर दिनेश तनेजा और महेन्द्र सिंह को कार्रवाई करनी थी। फर्जी बिल के आधार पर एफआईआर क्यों नहीं कराई गई। क्योंकि जिन लोगों को इंजेक्शन का बेचान किया गया, ना तो उनका पता चल पाया है।
वहीँ डीसीओ दिवाकर पटेल मामले से पल्ला झाड़ते दिखे और उन्होंने कहा कि मुझे किसी ने नहीं बताया। मुझे तो व्यक्तिगत रूप से पता चला तो मैंने डीसीओ सिंधु कुमारी को बुलाकर पूछा था। उसके बाद केवल एक घंटे में कार्रवाई की। मुझे और भी बहुत कुछ पता चला था, इसीलिए मैंने इसका लाइसेंस तुरंत कैंसिल कर दिया। वीके एंटरप्राइजेज निदेशक हरिओम के अनुसार केवल मेडिहब का लाइसेंस कैंसिल किया है। वीके एंटरप्राइजेज और सुनीता मेडिकल एंड प्रोविजन स्टोर का लाइसेंस निरस्त नहीं है। हमारी कोई गलती नहीं है।